Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ ( ३१२ ) कृतयुग्म- कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सोलह महायुग्मों के जीव मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी होते हैं । इस प्रकार सोलह महायुग्मों के जीवों के विषय में जानना चाहिए । प्रथम समय कृतयुग्म कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सोलह महायुग्मों के जीव काययोगी होते हैं, मनोयोगी, वचनयोगी नहीं होते हैं । यहाँ भी ग्यारह उद्ददेशक है बाकी सब उद्देदेशक के जीव मनोयोगी-वचनयोगी व काययोगी होते हैं । कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्म-सणिपंचिदिया णं भंते ! x x x सेसं जहा एएस चेव पढमे उद्देसए जाव अनंतक्खुत्तो । ( मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी एवं सोलसु वि जुम्मेसु । > पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसष्णिपंचिदिया णं भंते ! x x x जहा सणिपंचिदियपढम समयउद्देसए तहेव णिरवसेसं xxx एवं सोलसु वि जुम्मे । एवं एए वि एक्कारस वि उद्देसगा कण्हलेस्ससए । - भग० श० ४० । श० २ । सू १, २ कृष्णलेशी वाले कृतयुग्म कृतयुग्मराशि संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी होते हैं । प्रथम समय के कृष्णलेशी कृतयुग्म कृतयुग्मराशि संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव काययोगी होते हैं, मनोयोगी, वचनयोगी नहीं होते हैं । इस प्रकार सोलह महायुग्मों के विषय में I जानना । यहाँ भी ग्यारह उद्दे शक है । बाकी सब उद्देशक के जीव मनोयोगी, वचनयोगी क काययोगी होते हैं । एवं गोललेस्सेसु विसयं । Jain Education International इसी प्रकार नीललेश्यावाले जीवों के विषय में जानना चाहिए । एवं काउलेस्सस्यं वि । --भग० श० ४० श० ३ For Private & Personal Use Only भग० श० ४० । श०४ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478