Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 395
________________ ( २७८ ) कायजोगी सगपदाणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उनकस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । कम्मइयकाय जोगी सु ओरालियपरिसादणकदीए णाणाजीवं पड़च्च जहष्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । तेजाकम्मइयएगपदस्स णत्थि अंतरं । - षट्० खण्ड ० ४ । १ । सू ७१ । पु ९ । पृष्ठ० ४१४ । ६ पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवों में औदारिक व वैक्रियशरीर की परिशातन व संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कामंण शरीर की संघातन परिशातन कृति का नाना व एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं होता । आहारक शरीर को परिशातन और संघातन-परिशातनकृति का अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कृषं से वर्ष पृथक्त्व काल प्रमाण होता है । एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं होता । काययोगियों में औदारिक और वैक्रियिक शरीर के तीनों पदों की प्ररूपणा एकेन्द्रियों के समान है । विशेष इतना है कि वैक्रियिकशरीर की संघातन व संघातन-परिशातनकृति का अन्तर जघन्य से एक समय होता है । आहारक शरीर के तीनों पदों की प्ररूपणा नाना जीवों की अपेक्षा ओघ के समान है व एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं होता । तेजस - कार्मण शरीर की संघातन-परिशातनकृति का अन्तर नहीं होता । औदारिक काययोगियों में औदारिकशरीर की परिशातनकृति तथा वैक्रियशरीर के तीनों पदों का नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं होता । एक जीव की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से कुछ कम तीन हजार वर्ष प्रमाण होता है । विशेष इतना है कि वैयिक शरीर की संघातनकृति का अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त कालप्रमाण होता है । औदारिक शरीर की संघातन परिशातन कृति का नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं होता है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त कालप्रमाण होता है । आहारक शरीर की परिशातनकृति का अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा ओघ के समान है । एक जीव की अपेक्षा अन्तर नहीं होता । तेजस और कार्मणशरीर के एक पद अर्थात् संघातन-परिशातनकृति का अन्तर ओघ के समान है । औदारिक मिश्रका योगियों में औदारिकशरीर की संघातनकृति के अन्तर की प्ररूपणा नाना जीवों की अपेक्षा ओघ के समान है । एक जीव की जघन्य से चार समय कम क्षुद्रभवग्रहण-प्रमाण और उत्कर्ष से एक समय कम अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीर की संघातन-परिशातनकृति का अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा ओघ के समान है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कर्ष से एक समय है। तेजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति के अन्तर की प्ररूपणा ओघ के समान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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