Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 421
________________ एवं जाव कलिओगत्ति। णवरं परिमाणं जाणियव्वं, परिमाणं पुव्वमणियं नहा पढमुद्देसए। -भग० श० ३१ । उ ५ क्षुद्रकृत युग्म राशि प्रमाण भवसिद्धिक नारकी यावत् कल्योज भवसिद्धिक नारकी के विषय में औधिक गमक के अनुसार आयुष्य बंध के विषय में चानना चाहिए। ( अज्झवसाणजोगणिव्वत्तिएणं करणोवाएणं x x x।) वे अपने अध्यवसाय रुप, योग के व्यापार से व करणोपाय द्वारा परभव का आयुष्य बांधते हैं। •५३.१२ कृष्णलेशी भवसिद्धिक क्षुद्रकृतयुग्म नारकी के योग से परभव का आयुष्य बंध व्योज द्वापरयुग्म कल्योज कण्हलेस्सभवसिद्धियखुड्डागकडजम्मणेरइया गं भंते ! कओ उववज्जति ? एवं जहेव ओहिओ कण्हलेस्सउद्देसओ तहेव गिरवसेसं चउसु वि जुम्मेसु भाणियव्वो जाव-अहेसत्तमपुढविकाहलेस्सखुड्डागकलिओगणेरइयाणं भंते ! कओ उववज्जति। तहेव । -भग० श० ३१ । ६ कृष्णलेशी-भवसिद्धिक क्षुद्रकृत युग्म प्रमाण नारकी यावत् कल्योज नारकी-धूम प्रभा से अधःसप्तम नारकी योग आदि के द्वारा परभव का आयुष्य बांधते हैं । औधिक कृष्ण लेश्या के अनुसार चारों युग्म का कथन कहना । .५३.१३ क्षुद्रयुग्मराशिप्रमाणनीललेशी भवसिद्धिक नारकी का योग आदि से परभव का आयुष्य बंध योज " " " " द्वापरयुग्म " " " " " कल्योज " " णोललेस्सभवसिद्धिया चउसुवि जुम्मेसु सहेव भागियव्वा नहा ओहिए णीललेस्सउद्देसए। -भग० श० ३१ । उ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478