Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 431
________________ ( ३१४ ) अस्तु — उनमें प्रथम समय के सोलह महायुग्मों के जीव केवल काययोगी होते हैं, बाकी सब मनोयोगी, वचनयोगी व काययोगी होते हैं । अभवसिद्धियषडजुम्मकडजुम्मसणिपंचिदिया णं भंते! कओ उवव ज्जति ? उयवाओ तहेव सए । xxx । एवं सोलससु वि जुम्मेसु । - भग० श० ४० । श० १५ । सू १ अभवसिद्धिक- कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव के विषय में कृष्ण लेशी शतक के अनुसार जानना । वे मनोयोगी, वचनयोगी व काययोगी होते हैं । इस प्रकार सोलह महायुग्म को जानना । अणुत्तरविमाणवज्जो । x x x जहा पढमसमयअभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसष्णिपंचिदिया णं मंते ! कओ उववज्जंति ? जहा सण्णिणं एकसमयउद्देसए तहेव । x x x । एवं एत्थ वि एक्कारस उद्देसगा कायव्वा xxx भग० श ४० । श० १५ । सू २ प्रथम समय के अभवसिद्धिक कृतयुग्म - कृतयुग्म राशि संज्ञी पंचेन्द्रिय के विषय में प्रथम समय के संज्ञी उद्देशक के समान कहना । अस्तु वे मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं परन्तु काययोगी होते हैं । यहाँ भी ग्यारह उद्देशक है। बाकी सबके उद्दे शक में तीनो योग होते हैं । उववज्जं ति ? कहना | कण्हलेस अभवसिद्धिय - कडजुम्मकडजुम्मसणि-पंचिदिया णं भंते! कभ कण्हलेस - जहा एएस चेव ओहियसयं तहा कण्हलेस्ससयं विxxx कृष्णलेशीअभवसिद्धिककृतयुग्म कृतयुग्म राशि संज्ञी शतक की तरह कहना । प्रथम समय के काययोगी होते हैं, हैं। बाकी सब तीनो योगवाले होते हैं । Jain Education International - भग० ४० । श० १६ पंचेन्द्रिय के विषय में औधिक मनोयोगी वचनयोगी नहीं होते एवं छहि वि लेस्साहि छ सया कायव्वा जहा कण्हलेस सयं x x x -भग० श० ४० । श० १७-२१ जिस प्रकार कृष्णलेश्या का शतक कहा उसी प्रकार छओं लेश्या का शतक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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