Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 449
________________ ( ३३२ ) वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स। जोइसियस्स वेमाणियस्स एवं चेव । णवरं लेस्साओ जाणियवाओ, सेसं तहेव भाणियव्वं । -भग० श० २६ । उ १ सू १५ सयोगी मनुष्य के लिए जीव पद की वक्तव्यत्ता के अनुसार कहना चाहिए। चारों भंग मिलते हैं । अयोगी मनुष्य में सिर्फ चतुर्थ भंग मिलता है । सयोगी वाणव्यंतरदेव, सयोगी ज्योतिषीदेव और सयोगी वैमानिक देव में प्रथम और और द्वितीय दो भंग है। •१२ सयोगी जीव और ज्ञानावरणीय कर्म का बंध .१३ सयोगी जीव और दर्शनावरणीय कर्म का बंध जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्म कि बंधी बंधइ बंधिस्सइ ? एवं जहेव पावम्मस्स वत्तव्वया तहेव णाणावणिज्जस्स वि भाणियव्वा, णवरं जीवपए मणुस्सपए य सकसायी जाव लोभकसाइंमि य पढम-बिइया भंगा, अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिया। एवं दरिसणावरणिज्जेण वि दंडगो भाणियन्वो णिरवसेसो। -भग• श० २६ । उ १ । सू १६ पापकर्म की वक्तव्यता की तरह ज्ञानावरणीय कर्म के विषय में जानना चाहिए । नारकी से वैमानिक पर्यंत कहना। सयोगी में चार भग। इसी प्रकार मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी में चार भंग पाये जाते हैं । अयोगी में एक चतुर्थ भंग पाया जाता है । देखो .६१) नारकी से वैमानिक तक ( मनुष्य को छोड़कर ) प्रथम और द्वितीय दो भंग और मनुष्य में चार भंग मिलते हैं । इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के सम्बन्ध में जानना चाहिए। नोट-जिस दंडक में जो-जो योग हो वह-वह कहना। .१४ सयोगी जीव और वेदनीयकर्म का बंध जीवेणं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं कि बंधी-पुच्छा।= x x गोयमाx x x अजोगिम्मि य चरिमो, सेसेसु पढम-बिइया। -भग० श. २६ । उ १। सू १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478