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( ३३४ )
अनोगिम्मि चरिमो, सेसेसु पएसु चत्तारिभंगा जाव अणागारोवउत्ते।
-भग० श० २६ । उ १ । सू २०, २३ सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था ? चारों भंग होते हैं । अयोगी में चतुर्थ भंग होता है।
१७ सयोगी नारकी और आयुष्य कर्म का बंध
सयोगी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमारदेव और आयुष्य कर्म का बंध सयोगी पृथ्वीकायिक और आयुष्य बंध
रइए णं भंते ! आउयं कम्म कि बंधी-पुच्छा।
गोयमा ! अत्थेगइए चत्तारि भंगा, एवं सम्वत्थ वि गैरइयाणं चत्तारि भंगाxxx
असुरकुमारे एवं चेवxxx। एवं जाव थणियकुमाराणं।
पुढविक्काइयाणं चत्तारि भंगाxxx। सेसेसु सव्वत्थ चत्तारि भंगा।
-भग० श० २६ । उ १ । सू २४, २५ सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी काययोगी में चारों भंग होते । नारकी से असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार, पृथ्वीकायिक जीव में चारों भंग होते हैं। लेकिन वे सयोगी व काययोगी होते हैं।
नोट-तेजोलेशी पृथ्वीकायिक जीव के आयुष्य का बंध नहीं होता है। ( वर्तमानकाल की अपेक्षा)। .१८ सयोगी जीव और अपकायिक जीवों के आयुष्य बंध
सयोगी जीव और वनस्पतिकायिक जीवों के आयुष्य बंध
( आउयं कम्मं कि बंधी-पुच्छा ) एवं आउक्काइय--वणस्सइकाइयाणं वि गिरवसेसं।
-भग० श. २६ । उ १ । सू २५ इसी प्रकार यह अप्कायिक व वनस्पतिकायिक जीवों में चार भंग कहने । ( आयुध्यबंध की अपेक्षा)।
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