Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 433
________________ राशियुग्म में द्वापर युग्म राशि नारकी यावत् वैमानिक देव प्रथम उद्देशक के अनुसार आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं । राशियुग्म में कल्पोज राशि नारकी यावत् वैमानिक देव प्रथम उद्देशक के अनुसार आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं। ( कण्हलेस्सरासीजुम्मकडजुम्मणेरइया ) कओ उववज्जति ? उववाओ जहा धूमप्पभाए, सेसं जहा पढमुद्देसए। असुरकुमाराणं तहेब, एवं जाव वाणमंतराणं। -भग० श० ४१ । उ ५ कृष्णलेशी राशि युग्म कृतयुग्म नारकी यावत् वाणव्यंतरदेव आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं। कण्हलेस्सतेओएहि वि एवं चेव उद्देगओ। कन्हलेस्सदावरजुम्मेहिं एवं चेव उद्देसओ। कण्हलेस्सकलिओएहि वि एवं चेव उद्देसओ। -भग. श ४१ श. ६, ७, ८ कृष्णलेशी राशि युग्म में व्योजराशि, कृष्णलेशी राशि युग्म में द्वापर युग्म तथा कृष्णलेशी राशि युग्म में कल्योज राशि दंडक के जीवों के ( ज्योतिषी-वैमानिक को छोड़कर ) विषय में प्रथम उद्देशक की तरह आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं। जहा कण्हलेस्सेहिं एवं नीललेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियन्वा जिरवसेसा। णवरं रइयाणं उववाओ जहा वालु यप्पभाए, सेसं तं चेव । -भग• श ४१ श० ९ से १२ कृष्णलेश्यावाले जीवों के अनुसार नीललेश्यावाले जीवों के भी चार उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिए। अस्तु नारकी यावत् वाणव्यंतरदेव आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं। काउलेस्सेहि वि एवं चेव चत्तारि उद्देसगा कायव्वा। णवरं रइयाणं उववाओ जहा रयणप्पभाए, सेसं तं चेव । -भग० श ४१ श० १३ से १६ कापोत लेश्या के भी इसी प्रकार चार उद्देशक कहना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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