Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 428
________________ ( ३११ ) वचनयोगी व काययोगी होते हैं परन्तु मनोयोगी नहीं होते हैं । सोलह महायुग्म का इस प्रकार ही कहना । - ५४·४ सयोगी महायुग्म चतुरिन्द्रिय जीव चरिदिएहि वि एवं चेव बारस सया कायव्वा, नवरं ओगाहणा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । समयं, उक्कोसेणं छम्मासा । सेसं जहा बेइ दियाणं । ठिई जहणेणं एक्कं - भग० श० ३८ । सू १ इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय के भी बारह शतक सोलह महायुग्म के साथ कहने चाहिए । द्वितीय शतक में काययोगी होते हैं, परन्तु मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं । ग्यारह शतकों में वचनयोगी व काययोगी होते हैं, परन्तु मनोयोगी नहीं होते हैं । • ५४. ५ सयोगी असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव ( कडजुम्मकडजुम्म असष्णिपंचिदिया ) जहा बेई दियाणं तहेव असण्णिसु वि बारस सया कायव्वा । - भग० श० उ ३९ । स १ कृतयुग्म - कृतयुग्मराशि असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के भी ( बेइन्द्रिय शतक के समान ) बारह शतक कहते । प्रथम समय कृतयुग्म कृतयुग्म असंज्ञी पंचेन्द्रिय में काययोग होता है, परन्तु वचनयोग- मनोयोग नहीं होते हैं । बाकी ग्यारह शतक में वचनयोगी- काययोगी होते हैं, परन्तु मनोयोगी नहीं होते हैं । सोलह महायुग्म कहने - बारह शतक सहित । नोट - असंज्ञी मनुष्य व असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय इन दोनों का असंज्ञी पंचेन्द्रिय में आविर्भाव है । - ५४.६ सयोगी महायुग्म संज्ञो पंचेन्द्रिय कडजुम्मकडजुम्मसणिपंचिदिया णं भंते ! x x x मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी xxx एवं सोलसु वि जुम्मेसु भाणियव्वं । पढमसमय कडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिदिया णं बेदियाणं पढमसमइयाणं जाव अनंतक्खुत्तो x x x वयजोगी, कायजोगी ) x x x एवं सोलसु वि जुम्मेसु भाणियत्वं । Jain Education International भंते ! x x x सेसं जहा ( णो मणजोगी, जो एवं एत्थवि एक्कारस उद्देगा तहेव । - भग० श० ४० । श० १ सू २, ५, ६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478