Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 426
________________ ( ३०९ ) इसी प्रकार कापोतलेश्यावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों के भौ ग्यारह उद्देशक सहित यह शतक है । सब काययोगी होते हैं 1 जहा भवसिद्धिएहि चत्तारि सयाई भणियाइ एवं अभवसिद्धिएहि वि चारि साणि लेस्सासंजुत्ताणि भाणियव्वाणि x x x 1 - भग० श० ३५ । श० ९ से १२ जैसे भवसिद्धिक के चार शतक कहे वैसे ही अभवसिद्धिक के भी चार शतक लेश्या सहित कहते । सब काययोगी होते हैं । • ५४-२ सयोगी महायुग्म द्वीन्द्रिय जीव ( कडजुम्मकडजुम्म बेइ दिया णं भंते ! ) x x x | णो मणजोगी वयजोगी वा कायजोगी वा । x x x एवं सोलससुवि जुम्मेसु । - भग० श० ३६ । श ० १ । उ १ 1 सू १, २ कृतयुग्म - कृतयुग्म द्वीन्द्रिय के जीव मनोयोगी नहीं होते हैं, किन्तु वचनयोगी और काययोगी होते हैं । इसी प्रकार सोलह युग्मों में कहना । ( पढमसमय कडजुम्मकडजुम्म बेइ दिया ) णो मणजोगी णो वयजोगी, कायजोगी । x x x । एवं एए वि जहा एगिदियमहाजुम्मेसु एक्कारस उद्देगा तहेव भाणियव्वा । x x x - भग० श० ३६ | श ० १ । उ २ से ११ । सू १ दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, छट्ट, सातवें, आठवें, नववें, दसवें, ग्यारहवें उद्दे शकों में मनोयोग नहीं होता है, वचनयोग और काययोग होता है । प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्म राशि द्वीन्द्रिय के जीव मनोयोगी और वचनयोगी नहीं होते हैं, परन्तु काययोगी होते हैं । सोलह महायुग्मों का इसी प्रकार जानना चाहिए । ( कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्मबेइ दिया ) कण्हलेस्सेसु वि एक्कारसउद्देगसंत्तं स्यं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478