Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 436
________________ ( ३१९ ) ३ – एवं पोललेस्श - अभदसिद्धिय-रासीजुम्मकडजुम्मणेरइयाणं चत्तारि उद्देगा । जानो । ४ - काउलेस्सेहि विचत्तारि उद्देगा । ५ - तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देगा । ६ – पम्हलेस्सेहि बि चत्तारि उद्देगा । ७ - सुक्कलेस्सअभवसिद्धिए वि चत्तारि उद्देगा । राशियुग्म में कृतयुग्म राशि कृष्णलेशी अभवसिद्धिक नारकी आदि का प्रथम उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए । इसी प्रकार नीललेश्यावाले कृतयुग्म राशि अभवसिद्धिक जीव के चार उद्देशक इसी प्रकार कापोतलेशी अभवसिद्धिक जौवों के भी चार उद्दे शक है । तेजोलेशी अभवसिद्धिक जीवों के भी ऐसे ही चार उद्देशक जानो । पद्मलेशी अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्दे शक हैं । शुक्ललेशी अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्दे शक है 1 सम्मदिट्ठीरासो जुम्मकडजुम्मरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? एवं जहा पढमो उद्देओ । एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देगा भवसिद्धियसरिसा कायव्वा । - भग० श० ४१ । श० ८५ से ८० राशियुग्म में कृतयुग्म राशि सम्यग्दृष्टि नारकी आदि प्रथम उद्देशक के समान यह उद्देशक भी है। ऐसे ही चारों युग्म में भवसिद्धिक के समान चार उद्ददेशक कहना । कण्हले स्ससम्मदिट्ठीरासोजुम्मकडजुम्मणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि वि उद्देसना कायन्वा । एवं सम्मदिट्ठीसु वि भवसिद्धिय सरिसा अट्ठावीस उद्देसगा कायव्वा । - भग० श० ४१ । श० ५९ से ११२ राशियुग्म में कृतयुग्म राशि कृष्णलेशी सम्यग्दृष्टि नारकी आदि कृष्णलेश्याषाले के समान चार उद्देशक जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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