Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 397
________________ ( २८० ) आहारकशरीर की परिशातनकृति युक्त जीव सबसे कम है । इससे उसकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव विशेषाधिक है । कारण सुगम है । काययोगियों में औदारिक, वैक्रियिक और आहारकशरीर के तीन पदों की प्ररूपणा ओघ के समान है । औदारिककाययोगियों से औदारिकशरीर की परिशातनकृति युक्त जीव सबसे कम है । इनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे हैं । वैक्रियशरीर के तीनों पदों की प्ररूपणा तिर्यचों के समान है । आहारकशरीर के आश्रित अल्पबहुत्व नहीं है । क्योंकि उसका यहाँ एक ही पद है । औदारिकमिश्रकाययोगियों में औदारिकशरीर की संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक है, क्योंकि वे अपर्याप्तों में एक समय मात्र में संचित है। इनसे उसकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे है । क्योंकि इनमें संघातनकृति युक्त जीवों को छोड़कर शेष सब अपर्याप्त जीवों का ग्रहण है । वैक्रिय और आहारककाययोगियों में अल्पबहुत्व नहीं है क्योंकि वे एक-एक पद से सहित हैं । वैक्रियमिश्रकाययोगियों में वैक्रियशरीर की संघातन युक्त जीव सबसे थोड़े हैं । उनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीब असंख्यातगुणे हैं । यह सुगम है । आहारकमिश्र काययोगियों में आहारकशरीर की संघातनकृति युक्त जीव सबसे कम है। उनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे है । शेष पदों के अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि वे एक-एक पद से सहित है । कार्मणकाययोगियों में अल्पबहुत्व नहीं है क्योंकि उनमें एक ही पद है । - १० करणानुगम में संचित योगी जीवों की संघातनादि कृति युक्त कितने क्षेत्र में अवस्थिति पंचमण जोगि पंचवचिजोगीसु ओरालिय- वेउब्विय- आहारपरिसादणकदी ओरालिय- वे उब्विय- आहारतेजा - कम्मइयसंघादण - परिसारणकदी के वडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे। कायजोगीसु ओघो। णवरि तेजा - कम्मइयपरिसादणकदी णत्थि । ओरालियकायजोगीसु ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघावणपरिसादणकदी के वडिखेत्ते ? सव्वलोगे । वेजव्वियतिष्णिपदा ओरालियआहारपरिसादणकदी के वडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । ओरालियमिस्सकायजोगीणं सुहुमेइ दियभंगो । वेउव्वियकायजोगीसु अप्पणो दोपदा लोगस्स असंखेज्जदिभागे । वेउव्विय मिस्सकायजोगीणं देवभंगो । आहारआहारमिस्सतिचत्तारिपदा लोगस्स असंखेज्जदिभागे । कम्मइय कायजोगी सु ओरालियपरिसादणकदी केवलिभंगो | तेजा - कम्मइय- संघादणपरिसावणकदी सव्वलोगे । Jain Education International - पट्० खण्ड ० ४ । १ । सू ७१ । पु ९ पृष्ठ० ३६७ । ८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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