Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 462
________________ ( ३४५ ) सयोगी-काययोगी अचरम पृथ्वीकायिक आयुष्य कर्म का बंध प्रथम-तृतीय भंग से करता है। सयोगी-काययोगी अचरम अपकायिक और आयुष्य बंध " , वनस्पतिकायिक . सयोगी-काययोगी अचरम अपकायिक तथा वनस्पतिकायिक आयुष्य कर्म का बंध प्रथम-तृतीय भंग से करते हैं। सयोगी अचरम अग्निकायिक और आयुष्य बंध " वायुकायिक , अचरिमे x x x आउयं कम्मं कि बंधी-पुच्छा x x x। तेउकाइय वाउक्काइयाणं सम्वत्थ पढम-तइया भंगा। -भग• श• २६ । उ ११ । सू ६ सयोगी-काययोगी अचरम अग्निकायिक तथा वायुकायिक आयुष्य कर्म का प्रथमतृतीय भंग से बंध करता है। सयोगी अचरम द्वीन्द्रिय यावत् चतुरिन्द्रिय और आयुष्य बंध बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाण एवं चेव । -भग० श. २६ । उ ११ । सू ६ सयोगी-काययोगी अचरम द्वीन्द्रिय जीव यावत् चतुरिन्द्रिय जीव आयुष्य कर्म को प्रथम-तृतीय भंग से बांधता है। सयोगी अचरम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और आयुष्य बंध पंचिवियतिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते तइओ भंगो, सेसेसु पएसु सम्वत्थ पढम-तइया भंगा। -भग० श० २६ । उ ११ । सू ६ सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी अचरम पंचेन्द्रिय तिर्यंच-आयुष्य कर्म-बंधप्रथम-तृतीय भंग से करता है। सयोगी अचरम मनुष्य और आयुष्य बंध मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अधेयए, अकसायम्मि य तइयो भंगो, अलेस्सकेवलणाण-अजोगी य ण पुच्छिज्जति । सेसपएसु सव्वत्थ पढम तइया भंगा। -भग० श० २६ । उ ११ । सू ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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