Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 420
________________ ( ३०३ ) ( नीललेस्सखुड्डाग कडजुम्मणेरइया ) एवं जहेव करहलेस्सखड्डाग कडजुम्मा | णवरं उववाओ जो वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव । वालुयप्पभापुढविणीललेस्सखुडागकडजुम्मणेरहया एवं चेव । एवं पंक पाए वि, एवं धूमप्पभाए वि, एवं चउसुवि जुम्मेसु x x x - भग० श० ३१ । उ ३ । सू १ कृष्ण लेश्यावाले क्षुद्रकृतयुग्म नैरयिक के विषय में जैसा कहा, वैसा ही नीललेश्या । और अध्यववाले क्षुद्रकृत युग्म नारकी आत्म प्रयोग (जोग रुप व्यापार) से उत्पन्न होते साय - जोग-करण से परभव के आयुष्य का बंध करते हैं । वालुकाप्रभा, पंकप्रभ व धूमप्रभा नारकी के विषय में भी चारों युग्म का कथन कहना चाहिए । नोट - इसमें असंज्ञी व सरीसृप उत्पन्न नहीं होते हैं । ५३.१० कापोतलेशी क्षुद्र कृत युग्म नारकी का उपपात आत्म प्रयोग से तथा अध्यवसाय-जोग- -करण से आयुबंध । ( काउलेस्सखडागकडजुम्मणेरइया ) एवं जहेब कण्हलेस्सखुडागकडजुम्म० णवरं उववाओ, सेसं तं चैव । ( रणप्पभापुढवि काउलेस्सबुड्डाग कडजुम्मणेर इया ) एवं चेव । एवं सक्करप्पभाए वि, एवं वालुयप्पभाए वि एवं चउसु वि जुम्मेसु । - भग० श० ३१ । उ ४ । सू १ ।२ कापोत लेशी क्षुद्रकृत युग्म राशि प्रमाण नारकी आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं । अध्यवसाय - जोग-करण से परभव का आयुष्य बाँधते हैं । इसी प्रकार रत्नप्रभा नारकी, शर्कराप्रभा नारकी तथा वालुकाप्रभा नारकी में चारों युग्म का निरुपण करना चाहिए । • ५३.११ क्षुद्रकृत युग्म राशि नारकी के योग से परभव का आयुष्य बंध व्योज नारकी द्वापर काल्योज 91 Jain Education International 11 नारको नारकी "1 99 "" भवसिद्धियखुद्दागकडनुम्मणेरइया णं भंते! कओ उववज्जं ति कि रइया ? एवं जहेव ओहिओ गमओ तहेव णिरवसेसं जाव णो परप्पओगेणं उववज्जति । 17 रयणप्पभापुढविभवसिद्धियखुड्डाकडजुम्मेणेरइया णं भंते । O एवं चेव, णिरवसेस, एवं जाव अहेसत्तमाए । एवं भवसिद्धियखुड्डागतेओगणेरइया वि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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