Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 454
________________ ( ३३७ ) २६ सयोगी अनंतरोपपत्रक मनुष्य तथा पापकर्म का बंध मनुस्साणं अलेस्स सम्मामिच्छत्त-मणपज्जवणाण केवलणाण-विभंगणाणपोसण्णोवउत्त-अवेयग-अकसायी-मणजोग-वय जोग- अजोगी- एयाणि एक्कारस पयाणि न भग्णंति । - भग० श० २६ । उ २ । सू २ सयोगी, काययोगी अनंतरोपपत्रक मनुष्य पापकर्म का प्रथम द्वितीय भंग से बंध करते हैं । मनोयोग-वचनयोग- अयोग अवस्था उस अवस्था में नहीं होती है । अतः ये पद नहीं कहने त्राहिए | नोट - अनंत रोपपन्नक मनुष्य में अलेशीपन, सम्यग्मिथ्यात्व मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान, विभंगज्ञान, नोसंज्ञोपयुक्त, अवेदक, अकषायी, मनोयोग, वचनयोग, अयोगीपन- ये ग्यारह पद नहीं कहने चाहिए । अलेस्स सम्मामिच्छत्त-मणपज्जवणाण केवलणाण बिभंगणाण-पोसण्णोवउत्त-अवेयग-अकसायी मणजोगवयजोग अजोगी- एयाणि (अलेशी- सम्यग्मिथ्यात्व मनः पर्यवज्ञान केवलज्ञान - विभंगज्ञान-नोसंज्ञोपयुक्त-अवेदक-अकषायी मनोयोगवचनयोग- अयोगीपन । ) ( अनंत रोववण्णए ) मणुस्साणं अलेस्स xxx एयाणि एक्कारस पयाणिन भण्णंति । अनंत रोपपन्नक मनुष्य - भग० २६ उ २ । सू २ में अलेशोपन x x x और अयोगीपन- ये ग्यारह पद नहीं कहने चाहिए । • २७ सयोगी अनंतरोपपन्नक वाणव्यंतर-ज्योतिषी वैमानिक देव तथा पापकर्म का बंध वाणमंतर - जोइसिय- वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं तहेव ते तिष्णि ण भति । सव्र्व्वेस जाणि सेसाणि ठाणाणि सव्वत्थ पढम- बिइया भंगा । भग० श० २६ । उ २ । सू २ सयोगी-काययोगी अनंतरोपपन्नक वाणव्यंतर ज्योतिषी और वैमानिक प्रथम द्वितीय विकल्प से बंध करते हैं । पूर्वोक्त तीन पद- सम्यग्मिथ्यात्व मनोयोग - वचनयोग नहीं कहना चाहिए । २८ सयोगी अनन्तरोपपन्नक जीव दंडक और ज्ञानावरणीय आदि सात कर्मबंधन ( आयुष्य छोड़कर ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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