Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 1260
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तरा ॥ ६९५ ।। www.kobatirth.org असारं भांडं चाsपोज्झति अपोहति त्यजतीत्यर्थः ॥ २३ ॥ ॥ मूलम् ॥ - एवं लोए पलितंमि । जराए मरणेण य ॥ अप्पाणं तारइस्सामि । तुज्झेहिं | अणुमन्नि ॥ २४ ॥ व्याख्या - एवममुनाऽनेन दृष्टांतेन लोके जरया मरणेन च प्रदीप्ते प्रज्ज्वलिते सत्यहमात्मानं तारयिष्यामि . कीदृशोऽहं ? युष्माभिरनुमतो भवद्भिर्दत्ताज्ञस्तस्मान्मह्यमाज्ञा दातव्या. अहं भवदाज्ञया आत्मन उद्धारं करिष्यामीति भावः ॥ २४ ॥ ॥ मूलम् ॥ तं बिंति अम्मापियरो । सामन्नं पुत्त दुच्चरं ॥ गुणाणं तु सहस्साइं । धारयन्वाइ भिक्खुणो ॥ २५ ॥ व्याख्या-अथ मातापितरौ तं मृगापुत्रंप्रति ब्रूतः, हे पुत्र ! श्रामण्यं दुश्वरं, साधुधर्मो दुष्करोऽस्ति. हे पुत्र ! चारित्रस्योपकारकारकाणां गुणानां सहस्राणि भिक्षोर्धारयितव्यानि, मूलगुणाश्चोत्तरगुणाश्च भिक्षुणा धारणीयाः ॥ २५ ॥ ॥ मूलम् ॥-समया सवभृएसु । सत्तुमित्तेसु वा जगे || पाणाइवायविरई । जावज्जीवाइ दुक्करं ॥ २६ ॥ व्याख्या–पुनर्हे पुत्र ! सर्वभूतेषु समता कर्तव्या, अथवा जगे इति जगति शत्रुमित्रेषु स For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटोकं ॥ ६९५ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 1258 1259 1260 1261 1262 1263 1264 1265 1266 1267 1268 1269 1270 1271 1272 1273 1274 1275 1276 1277 1278 1279 1280 1281 1282 1283 1284 1285 1286 1287 1288 1289 1290 1291 1292 1293 1294 1295 1296 1297 1298 1299 1300 1301 1302 1303 1304 1305 1306