Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तरा
सटोक
॥६८०
हासने समारोपयतः. सौवर्णिककलशानामष्टोत्तरशतेन यावद्भौमेयानामष्टोत्तरशतेन सर्वा महान् निक्रमणाभिषेकोऽस्य कृतः. पिता बभाण पुत्र! भण? तव किं ददामि ? कस्य वस्तुनः सांप्रतं तवार्थः? ततः स महाबल उवाच-इच्छामि तात ! कुत्रिकापणादेकेन लक्षेण पतद्ग्रह, एकेन लक्षेण रजोहरणं, एकेन लक्षण काश्यपाकारणमिति.
ततो बलराजा कौटुंबिकपुरुषैत्रीण्यपि वस्तूनि प्रत्येकमेकैकलक्षेणानायितवान्.ततःस काश्यपो वसुभूतिनामा बलेन राज्ञाभ्यनुज्ञातोऽष्टगुणपोतिकेन पिनद्धमुखश्चतुरंगुलवर्जकेशान् महाबलमस्तके चकर्त. प्रभावती तान् केशान् हंसलक्षणपटशाटके प्रतिक्षिपति, तच्च वस्त्रं स्वोच्छीर्षकस्थाने न्यस्य. ति. ततः स महावलो गोशीर्षचंदनानुलिप्तः सर्वालंकारविभूषितः पुरुषसहस्रवाह्यां शिविकामारूढः, एकया वरतरुण्या धृतातपत्रो द्वाभ्यां वरतरुणीभ्यां चाल्यमानवरचामरो मातृपितृभ्यामनेकभटकोटिपरिवृतः प्रत्रज्याग्रहणार्थं चलितः. तदानीं तं नगरलोका एवं प्रशंसंति, धन्योऽयं कृतार्थोऽयं, सुलब्धजन्मायं महाबलकुमारो यः संसारभयोद्विग्नः सर्वसांसारिकविलासमपहाय प्रथमवयःस्थ एवं परि
॥६८०॥
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