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नंदीवर्धन मुझे वृद्धावस्था में अशरण छोड़कर चला गया है। फिर उसने त्रिशला महादेवी की विकुर्वणा की। उसने भी अनेक बार वैसा ही विलाप किया। उनके विलाप से भी जब प्रभु का मन लिप्त नहीं हुआ, तब उस दुराचारी ने एक छावनी की विकुर्वणा की। उसके एक रसोईये को चावल पकाने का विचार आया, उसे चूल्हे के लिए पाषाण नहीं मिले, तब उसने प्रभु के दोनों चरणों को चूल्हा बनाकर उस पर चावल का भोजन रखा और दोनों पैरों के बीच में अग्नि प्रज्वलित की। अनुक्रम से उसने वह अग्नि इतनी अधिक बढ़ाई कि पर्वत पर दावानल की तरह प्रभु के चरण उस अग्नि से तप्त हो गए। तथापि अग्नि में डाले सुवर्ण के तरह उनकी शोभा हीन नहीं हुई, बल्कि वृद्धि को प्राप्त हुई। पश्चात् निष्फल हुए उस अधम देव ने एक भयंकर पकवण (चंडाल) विकुर्वा। उसने आकर प्रभु के कंठ में, दोनों कानों में, दोनों भुजाओं में, और जंघा पर शूद्र पक्षियों के पिंजरे लटकाए। उन पक्षियों ने चोंच तथा नख से इतने सारे प्रहार किये कि प्रभु का सारा शरीर उन पिंजरों के जैसे सैंकड़ों छिद्रवाला हो गया। उसमें भी पक्क पत्तों की भांति उस चंडाल को असारता ही मिली। तब उस दुष्ट ने महाउत्पातकारी प्रचंड पवन उत्पन्न की। बड़े वृक्षों को तृण की तरह आकाश में उछालता हुआ और दिशाओं में पत्थर और कंकर फेंकता हुआ वह पवन चारों ओर विपुल रज (धूल) उड़ाने लगा। धमनी की तरह अंतरीक्ष और भूमि को सब ओर से भरकर उस पवन ने प्रभु को उठा उठा कर नीचे पछाड़ा। ऐसे उग्र पवन से भी जब उसका धारा हुआ काम हुआ नहीं, तब देवताओं में कलंक रूप उस दुष्ट ने तत्काल ही चक्रवात की विकुर्वणा की। पर्वतों को भी घुमाने में परिपूर्ण पराक्रम वाले उस चक्रवात ने चक्र पर रहे मिट्टी के पिंड की तरह प्रभु को खूब घुमाया। समुद्र में हुए आवर्त की भांति उस चक्रवात से एक तान में तल्लीन रहे प्रभु ने किंचित् भी ध्यान छोड़ा नहीं। तब उस संगम ने विचार किया कि, 'अहो! इस वज्र जैसे कठिन मनवाले मुनि को मैंने अनेक प्रकार से हैरान किया, तो भी वे किंचिन्मात्र भी क्षोभ को प्राप्त नहीं हुए। परंतु अब भग्नवाचावाला मैं इंद्र सभा में कैसे जाऊं ? इसलिए अब तो इसके प्राण का नाश करने से ही इसका ध्यान नाश होगा, इसके अतिरिक्त अब अन्य कोई उपाय नहीं है। ऐसा विचार करके उस अधम देव ने एक कालचक्र उत्पन्न किया। हजार टन के भारवाला लोहे से घड़ा हुआ वह कालचक्र कैलाश पर्वत को जिस प्रकार रावण ने उठाया था, उसी प्रकार उसे देव ने ऊंचा उठाया। पीछे मानो
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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