Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 326
________________ होंगे। इतना ही नहीं परंतु धर्म में स्थित अन्यों को भी विपर्यास भाव करायेंगे। धर्म के उद्योग में तत्पर तो कोई विरले ही होंगे। जो स्वयं प्रमादी होने पर भी धर्म में शिथिल है वे, अन्यों को भी शिक्षा देंगे। वे गांव में रहे हुए शहरियों के समान ग्राम्य जन हंसी करे वैसे अन्य हंसी करेंगे। हे राजन्! इस प्रकार आगामी काल में प्रवचन के अज्ञात पुरुष होंगे। यह कपि के स्वप्न का फल जानना।। (गा. 35 से 38) ३. जो क्षीरवृक्ष का स्वप्न देखा, इससे सातों क्षेत्र में द्रव्य का उपयोग करने वाले दातार और शासन-पूजक क्षीरवृक्ष तुल्य श्रावक होंगे, उनको ठग ऐसे लिंगधारी रुंध डालेगे। ऐसे पार्श्वस्थ की संगत से सिंह जैसे सत्त्ववाले महर्षिगण भी उनको श्वान के जैसे सार रहित लगेंगे। सुविहित मुनियों की विहारभूमि में ऐसे लिंगधारी शूली जैसे होकर उपद्रव करेंगे। क्षीर वृक्ष जैसे श्रावकों को ऐसे मुनियों की संगत करने देंगे नहीं। इस प्रकार क्षीर वृक्ष के स्वप्न का फल है। (गा. 39 से 41) ४. अब चौथे स्वप्न का फल इस प्रकार है- धृष्ट स्वभावी मुनि धर्मार्थी होने पर भी काकपक्षी के जैसे विहारवापिका में रमण नहीं करते, वैसे प्रायः अपने गच्छ में रहेंगे नहीं। इससे दूसरे गच्छ के सूरिगण कि जो वंचना करने में तत्पर और मृगतृष्णिका जैसे मिथ्याभाव दिखानेवाले होंगे, उनके साथ में जड़ाशय से चलेंगे। ‘इनके साथ गमन करना युक्त नहीं है। इसके उपदेशक उनके सामने होकर विपरीत बाधा करेंगे। इस प्रकार काकपक्षी के स्वप्न का फल है। ५. श्री जिनमत कि जो सिंह जैसा है, वो जातिस्मरण एवं धर्मज्ञ से रहित है, जो कि भरतक्षेत्र रूपी वन में दिखाई देगा। उसका परतीर्थरूपी तिर्यंच तो पराभव कर नहीं सकता। परंतु सिंह के कलेवर में जैसे कीड़े पड़े और वह उपद्रव करते हैं, वैसे ही लिंगधारी कि जो कृमि की भांति अपने में से ही उत्पन्न होते हैं, वे उपद्रव करेंगे और शासन की हीलना करायेंगे। कितनेक लिंगधारी तो जैन शासन के पूर्व प्रभाव के कारण श्वापदों के जैसे अन्य दार्शनिकों से कभी भी पराभव को प्राप्त नहीं होंगे। इस प्रकार सिंह के स्वप्न का फल है। (गा. 42 से 46) ६. कमलाकर में जैसे कमल सुगन्धित होते हैं, वैसे ही उत्तमकुल में उत्पन्न सर्व प्राणियों को धार्मिक होना चाहिए, परंतु अब ऐसा नहीं होगा। धर्म परायण त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 313

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