Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ होने पर भी वे कुसंग से भ्रष्ट होंगे एवं कचरे में कमल खिलने के जैसे कुदेश में, कुकुल में जन्में कोई कोई प्राणी ही धार्मिक होगा। तथापि वे हीन जाति के होने से अनुपादेय होंगे। इस प्रकार कमल के स्वप्न का फल है। (गा. 47 से 50) ७. जैसे फल की प्राप्ति के लिए बीज यदि उषर भूमि में बोए, वैसे ही कुपात्र में सुपात्र बुद्धि से अकल्प्य वस्तुएँ बोयेंगे। अथवा जैसे कोई निराशय किसान घुणाक्षर न्याय से उत्तम क्षेत्र में अबीज के अन्तर्गत कल्प्य रूप पात्रदान करेंगे। यह बीज के स्वप्न का फल है। (गा. 51 से 52) ८. क्षमादि गुणरूप कमलों से अंकित एवं सुचारित्र रूप जल से परिपूर्ण ऐसे एकान्त में रखे कुंभ के जैसे महर्षि किसी भी स्थान पर और वह भी बहुत ही अल्प दृष्टिगोचर होंगे। एवं मलिन कलश के सामान शिथिल आचार और चारित्र वाले लिंगधारी जहाँ तहाँ बहुलता से दिखाई देंगे। वे मत्सरभाव से महर्षियों के साथ कलह करेंगे और वे दोनों लोगों में समान गिने जायेगे। गीतार्थ और लिंगधारी नगरलोग पागल हो जाने से जैसे राजा भी पागल हुआ था वैसे व्यवहार में गीतार्थ भी लिंगियों के साथ में रहेंगे। ___ (गा. 5 3 से 57) पृथ्वीपुर में पूर्ण नामक राजा था, उनके सुबुद्धि नामका बुद्धिसंपत्तिवान् मंत्री था। सुख पूर्वक काल निर्गमन करता हुआ एक बार सुबुद्धि मंत्री ने देवलोक नामक नैमित्तिक के भविष्य के विषय में पूछा। तब वह निमित्तक बोला कि- एक महिने के पश्चात् मेघवृष्टि होगी। उसके जल का जो भी पान करेगा वो सब ग्रथिल (पागल) हो जायेगे। उसके बाद पुनः कितनेक समय के बाद दूसरी बार मेघवृष्टि होगी। उसके जल का पान करने से लोग ठीक हो जायेगे।' मंत्री ने यह वृत्तांत राजा से कहा। तब राजा ने पटह बजाकर लोगों को जल संग्रह करने की आज्ञा दी।सर्व लोगों ने वैसा ही किया। पश्चात् नैमित्तिक के कथनानुसार कथित दिन को मेघ वृष्टि हुई। लोगों ने उस समय तो वह पानी पिया नहीं। परंतु कितनाक समय व्यतीत होने पर संग्रहित जल समाप्त हो गया। मात्र राजा और मंत्री के यहाँ जल बचा रहा, तब उनके अतिरिक्त अन्य सामंत आदि लोगों ने उस नए बरसे पानी का पान किया। उसका पान करते ही वे सर्वजन पागल 314 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344