Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 334
________________ दिन तक बरसेंगे। उसमें पहला पुष्कर नामका मेघ बरस कर पृथ्वी को तृप्त कर देगा। दूसरा क्षीर मेघ धान्य उत्पन्न करेगा, तीसरा धृत मेघ स्नेह (चिकनाहट ) रस मय पैदा करेंगे। चौथा अमृतमेघ औषधियों को उत्पन्न करेगा। पाँचवाँ रस मेघ पृथ्वी को रस मय बना देगे । इस प्रकार पैंतीस दिन तक शांतरूपी दुर्दिन वृष्टि होगी । फिर वृक्ष, औषधी, लता, वल्ली आदि हरी वनस्पतियाँ देखकर बिल में रहने वाले मनुष्य हर्षित होकर बाहर निकलेंगे। तब से यह भारतभूमि पुष्प फलवती होगी। पश्चात् मनुष्य मांस भक्षण नहीं करेंगे। मांस खाना छोड़ देंगे । फिर जैसे जैसे काल में वृद्धि होगी वैसे वैसे मनुष्यों के रूप में, शरीर के जोड़ो में, आयुष्य में, धान्य आदि में भी वृद्धि होती चली जाएगी। अनुक्रम से सुखकारी पवन चलेगी, ऋतुएँ अनुकूल होंगी, नदियों में जल की वृद्धि होगी, तिर्यञ्च और मनुष्य निरोगी होने लगेंगे। दुषमा काल को (उत्सर्विणी के दूसरे आरे में) अंत में इस भरतवर्ष की भूमि पर सात कुलकर होंगे। पहला विमलवाहन, दूसरा सुदाम, तीसरा संगम, चोथा सुपार्श्व, पाँचवाँ दत्त, छट्ठा सुमुख और सातवाँ संमुचि। उसमें से पहले विमलवाहन जातिस्मरण ज्ञान द्वारा अपने राज्य में बड़े बड़े गाँव और शहर बसायेंगे गाय, हाथी और अश्वों का संग्रह करेंगे । साथ ही शिल्प, व्यापार, लिपि, और गणितादि का व्यवहार लोगों में चलाएंगे। उसके पश्चात् जब दूध, दहीं, धान्य और अग्नि उत्पन्न होगी तब वह प्रजा हितेच्छु राजा लोगों को अन्न पका कर खाने का उपदेश देगा। (गा. 140 से 185 ) इस प्रकार जब दुःषमकाल व्यतीत होगा, तब शतद्वार नामक नगर में संमुचि नामक सातवें कुलवान की भार्या भद्रा देवी की कुक्षि में श्रेणिक का जीव पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। आयुष्य और शरीर आदि में मेरे ही समान पद्मनाभ नाम के पहले तीर्थंकर होंगे। सुपार्श्व का जीव शूरदेव नाम के दूसरे तीर्थंकर होंगे। पोट्टिल का जीव सुपार्श्व नाम के तीसरे, द्रढ़ायु का जीव स्वयंप्रभ नामके चौथे, कार्तिक शेठ का जीव सर्वानुभूति नाम के पांचवे, शंख श्रावक का जीव देवश्रुत नाम के छठे, नंद का जीव उदय नाम के सातवें, सुनंद का जीव पेढाल नाम के आठवें, कैकसी का जीव पौट्टिल नामके नवें, रेवती का जीव शतकीर्ति नामके दसवें, सत्यकि का जीव सुव्रत नामके ग्यारहवें, कृष्ण वासुदेव का जीव अमम नामके बारहवें, बलदेव का जीव अकषाय नामके तेरहवें, रोहिणी का जीव निष्पुलाक नामके चौदहवें, सुलसा का जीवनिर्मम नामके पंद्रहवें, रेवती त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 321

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