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करके चातुर्ययुक्त आलाप संलाप करते हुए मन के संयोग की स्पर्धा करता हो वैसे शरीर संयोग भी हो गया । वासवदत्ता की विश्वासपात्र कांचनमाला नामक की एक दासी थी, मात्र एक वहीं इन दोनों का चारित्र जानती थी । उस एक ही दासी से सेवित होने से उन दोनों के दाम्पत्य का किसी को ज्ञान नहीं हुआ । अतः वे दोनों सुखपूर्वककाल निर्गमन करने लगे ।
(गा. 207 से 227)
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एक बार अनलगिरि हाथी बंधस्थान को तोड़कर महावतों को गिरा कर स्वेच्छा से स्वच्छंद हो गया एवं इतः ततः भ्रमण करता हुआ नगरजनों को क्षुभित करने लगा । तब 'इस अवश हाथी को कैसे वशीभूत करना ? ऐसा राजा अभयकुमार पूछा। तब अभयकुमार ने कहा कि 'उदयन राजा के गीत गान से यह वश में हो जाएगा । तब प्रद्योत राजा ने अभयकुमार को पूछा । तब अभयकुमार ने कहा कि 'उदयन राजा के गीत गान से यह वश में हो जाएगा। प्रद्योत राजा ने उदयन, से कहा कि अनलगिरि हाथी के पास जाकर गायन करो । 'उदयन ने वासवदत्ता के साथ हाथी के पास जाकर गायन किया वह गायकी सुनकर हाथी स्तब्ध हो गया, तब उसे बांध लिया गया। राजा प्रद्योत ने अभयकुमार को दूसरी बार वरदान मांगने को कहा। अभयकुमार ने पूर्व की भांति उसे भी अमानत स्वरूप रहने दिया ।
(गा. 228 से 231)
एक बार महोत्सव के निमित्त से चंडप्रद्योत राजा अंतः पुर-परिवार के साथ, महर्द्धिक नगर जनों के साथ उद्यान में गया हुआ था । उस समय योगंधरायण नाम का उदयन राजा का मंत्री उनको मुक्त करने का उपाय का चिंतन करता हुआ मार्ग में घूम रहा था । उसे आज उपाय मिल जाने से वह अपनी बुद्धि के वैभव की गर्मी को अंतर में झेल न सका । इसलिए वह बोल उठा “प्रायः जो मन में होता है, वह वचन में आता है।" वह बोला कि 'उस विशाल लोचन वाली स्त्री को मैं मेरे राजा के लिए उसका हरण न करूंग तो मेरा नाम योगंधरायण नहीं ।' मार्ग में जाते हुए चंडप्रद्योत राजा ने उसकी यह गर्विष्ट वाणी को सुनकर उसकी ओर दुष्ट कटाक्ष भरे नेत्रों से देखा । चेष्टाओं से हृदयभाव के ज्ञाता योगंधरायण ने शीघ्र ही प्रद्योत राजा का कुपित होना जान लिया । इसलिए तात्कालिक बुद्धिवालों में अग्रणी उसने शीघ्र अपना उत्तरीय
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व )
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