________________
सुनाया। तब उन्होंने शंकित होकर पूछा कि, 'हे स्वामी! गोशाला ने कहा कि मैं भस्म कर डालूंगा' वह उसका उन्मत्त भाषण है या वह वैसा करने में समर्थ है ? तब प्रभु ने फरमाया कि वह अर्हन्त के अतिरिक्त अन्य पर वैसा कर सकता है। अनार्य बुद्धि से अर्हन्त को मात्र संताप ही दे सकता है। इसलिए आनंद! तुम जाकर गौतम आदि सर्व मुनियों को ये समाचार दे दो कि जिससे उसके साथ कोई बोले नहीं । वैसी प्रेरणा करने से तेरा भी हित होगा। क्योंकि धर्म के विघ्न अपने को पीड़ित करते हैं ।" आनंद ने तुरंत ही सर्व मुनियों के पास जाकर इस प्रकार कह दिया। इतने में तो गोशाला प्रभु के पास आया और इस प्रकार बोला कि “अरे काश्यप! तूं 'यह गोशाला मंखलिपुत्र और मेरा शिष्य है' इत्यादि जो लोगों के पास बोलता है, वह तेरा भाषण मिथ्या है, क्योंकि जो तेरा शिष्य गोशाला था, वह शुक्लकुल का था, वह तो धर्मध्यान से मृत्यु प्राप्त करके देव गति में उत्पन्न हुआ है। उसका शरीर उपसर्ग और परीषह सहन करने में समर्थ जानकर मेरा शरीर छोड़ कर मैं उसमें घुस गया हूँ, मेरा नाम तो उदाय नामक मुनि हैं। इससे मुझे जाने बिना 'यह मंखलिपुत्र गोशाला मेरा शिष्य है, ऐसा क्यों कहता है ? तूं कोई मेरा गुरु नहीं है ।" प्रभु बोले कि - 'गोशाला ! जैसे कोई अल्पबुद्धि वाला चोर पुलिस से पकड़ा जाय तब किसी खड्डे का या दुर्ग, वन का ढक्कन नहीं मिलने से वह सन, रुई या घास से अपना अपना शरीर ढंककर अपनी जाति को गुप्त हुआ माने, वैसे तू भी 'मैं' गोशाला नहीं हूँ, ऐसा बोलकर अपनी जाति को छुपाना चाहता है, परन्तु तू क्यों असत्य बोलता है ? तू वही है, दूसरा नहीं हैं ।" प्रभु के इस प्रकार के वचनों को सुनकर गोशाला क्रोध करके बोला कि - "अरे काश्यप ! आज तू भ्रष्ट हो जाएगा, नष्ट हो जाएगा, नाश को प्राप्त हो जाएगा।” उसके इस प्रकार के वचनों की सुनकर प्रभु के शिष्य सर्वानुभूति मुनि प्रभु के ऊपर अत्यन्त राग से वह सहन नहीं कर सके, इससे वे गोशाले को बोल उठे कि, “अरे गोशाला! इन गुरु ने तुझे दीक्षा दी है और इन्होंने ही शिक्षा भी दी है, इस उपरांत तू क्यों इनका निह्नव करता है ? तू ही गोशाला है।' यह सुनते ही कोपायमान होकर गोशाला ने दृष्टि रूप ज्वाला छोड़े वैसे ही सर्वानुभूति मुनि पर तेजोलेश्या छोड़ी। महाशय सर्वानुभूति मुनि गोशाला की तेजोलेश्या से दग्ध होकर शुभ ध्याय में मरकर सहस्रार देवलोक में देवता हुए। अपनी लेश्या की शक्ति से गर्वित गोशाला उसके पश्चात् पुनः पुनः प्रभु की निर्भर्त्सना करने लगा। तब दूसरे सुनक्षत्र नामक भक्तिमान् शिष्य ने प्रभु की
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व)
201