Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 298
________________ देखकर उसका सन्मान करेगा वह वहाँ सुखपूर्वक रहेगा। साधुओं का उपासक और जीव आजीव अपने तत्त्वों के ज्ञाता अभीचि वहाँ रहता हुआ श्रावक धर्म को यथार्थ रूप से पालेगा। अनेक वर्षों तक अखंडित रूप से गृही धर्म को पालता हुआ भी अभीचि उदायन द्वारा हुए पराभव को याद करता हुआ वैर का शमन नहीं कर सकेगा। प्रांते उत्तम रीति से संलेखना करके पाक्षित अनशन की आराधना करके पिता के वैर आलोचना किये बिना मृत्यु के पश्चात् वह उत्तम देव बनेगा। वहाँ एक पल्योपम का आयुष्य निर्गमन करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर अभीचि का जीव मोक्ष में जाएगा। अभयकुमार ने पुनः पूछा, “हे प्रभु! आपने फरमाया कि कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्ठित वह प्रतिमा पृथ्वी में दब जाएगी, तो वह पुनः कब प्रगट होगी? प्रभु ने कहा कि सौराष्ट्र लाट और गुर्जर देश की सीमा पर एक अणहिलपुर पाटण नामक नगर बसेगा। वह नगर आर्य भूमि का शिरोमणि, कल्याणों का स्थान और अर्हत् धर्म का एक छत्र रूप तीर्थ होगा। वहाँ चैत्यों में स्थित रत्नमयी निर्मल अर्हन्त प्रतिमाएँ नंदीश्वर आदि स्थानों की प्रतिमाओं की सत्यता बता सकेगी। प्रकाशमान सुवर्णकलशों की श्रेणि से जिनके शिखर अलंकृत हैं, ऐसे उन चैत्यों से मानो सूर्य वहाँ आकर विश्रांत हुआ हो ऐसी शोभा को धारण करेगा। वहाँ प्रायः सर्व जन श्रावक होंगे, और वे अतिथिसंविभाग करके ही भोजन करेंगे। अन्यों की संपत्ति में ईर्ष्या रहित स्वसंपत्ति में संतुष्ट और सुपात्र में दान देने वाली ऐसी वहाँ की प्रजा होगी। अलकापुरी में यक्ष की भांति वहाँ अनेकों धनाढ्य श्रावक होंगे। वे अत्यंत आर्हत् बनकर सातक्षेत्रों में द्रव्य का उपयोग करेंगे। सुषमा काल के समान वहाँ के सर्व लोग परधन और परस्त्री से विमुख होंगे। हे अभयकुमार! मेरे निर्वाण के सोलह सौ गुनत्तर (१६६९) वर्ष के पश्चात् उस नगर में चौलुक्य कुल में चंद्रसमान, प्रचंड, पराक्रमी और अखंड शासनवाला कुमारपाल नामक धर्म वीर, दानवीर और युद्धवीर राजा होगा। वह महात्मा अपनी प्रजा का पिता के समान पालन करके विपुल समृद्धिवान् करेगा। सरल होने पर भी अति चतुर, शांत होने पर भी आज्ञा में इंद्र के समान और क्षमावान् होने पर भी अघष्य ऐसा वह चिरकाल तक पृथ्वी पर राज्य करेगा। उपाध्याय जैसे अपने शिष्यों को विद्यापूर्ण करते हैं, वैसे ही वह अपनी प्रजा को अपने समान ही धर्मनिष्ठ बनायेगा। शरणेच्छुकों को शरण देने योग्य और परनारी सहोदर वह राजा प्राण से और धन से भी धर्म को त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 285

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