Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 325
________________ वीतराग हैं, कोमल बुद्धिवालों को अग्राह्य हो अर्थात् तीक्ष्ण बुद्धिवाले ही आपके देवत्व को पहचान सकते हैं। (गा. 14 से 24) इस प्रकार स्तुति करके हस्तिपाल राजा के विराम लेने पर चरम तीर्थंकर प्रभु ने चरम देशना दी "इस जगत में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ हैं। इसमें काम और अर्थ तो प्राणियों को नाम से ही अर्थ रूप है, परमार्थ से ये अनर्थ रूप हैं। चार पुरुषार्थ में वास्तविक रीति से तो अर्थरूप मोक्ष ही है एवं उसका कारण धर्म है। वह धर्म संयम आदि दस प्रकार का है और संसार सागर से तारणहार है। अनंत दुःख रूप संसार है और अनंत सुख रूप मोक्ष है। इसलिए संसार से त्याग का और मोक्ष प्राप्ति का हेतु धर्म के बिना अन्य कोई नहीं है। लंगड़ा मनुष्य भी वाहन के आश्रय से दूर तक जा सकता है, वैसे ही धनकर्मी होने पर भी धर्म का आश्रय करने से वह मोक्ष में जाता है।" । (गा. 25 से 28) इस प्रकार देशना देकर प्रभु ने विराम लिया। तब हस्तिपाल राजा ने प्रभु को नमन करके कहा – 'हे स्वामिन्! मैंने आज स्वप्न में अनुक्रम से हाथी, कपि, क्षीरवालावृक्ष, काक पक्षी, सिंह, कमल, बीज और कुंभ से आठ वस्तु देखी हैं, तो उनका क्या फल होगा? भगवान! ऐसा स्वप्न देखने से मुझे भय लग रहा है। उसका फल फरमावें। (गा. 29 से 31) तब प्रभु ने फरमाया, “हे राजन्! सुनो १. अब से क्षणिक समृद्धि के सुख में लुब्ध हुए श्रावक विवेक रहित जड़ता से हाथी जैसे होने पर घर में ही पड़े रहेंगे। महा दुःखी स्थिति अथवा परचक्र का भय उत्पन्न होगा। तो भी वे दीक्षा नहीं लेगे। यदि दीक्षा ग्रहण भी कर लेंगे तो उनको भी कुसंग होने से छोड़ देंगे। कुसंग होने पर भी व्रत का पालन करने वाले विरले होंगे। इस प्रकार पहले हाथी के स्वप्न का फल है। (गा. 32 से 34) २. दूसरे कपि के स्वप्न का फल ऐसा है कि अधिकांश गच्छ के स्वामीभूत आचार्य कपि के समान चपल परिणामी, अल्प सत्त्ववाले और व्रत में प्रमादी 312 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)

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