Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 265
________________ उन वारांगनाओं ने नगर के बाहर उद्यान में निवास किया और फिर चैत्यों के दर्शन की इच्छा से वे शहर में आई । अतिशय विभूति द्वारा नैषेधि की आदि क्रिया करके और प्रभु की पूजा करके उन्होंने मालकोश आदि राग रागिनियों से प्रभु की स्तुति की। उस समय देव वंदन करने के लिए अभयकुमार भी वहाँ आए हुए थे। अपने आगे ही प्रभु की स्तवना करते हुए उन तीनों स्त्रियों को देखा। इसलिए मेरे प्रवेश से इन श्राविकाओं को देवभक्ति के विघ्न न हो ऐसा सोचकर वह द्वार के पास ही खड़ा रहा रंगमंडप में नहीं आया । मुक्ताशुक्ति मुद्रा द्वारा प्रणिधान स्तुति करके वह खड़ी हो गई, तब वह अंदर आए और उसकी सुंदर भावना, सुंदर वेष एवं उपशम भाव देखकर उसकी प्रशंसा करके आनंदपूर्वक बोले कि, भद्रे ! सद्भाग्य से मुझे आप जैसे साधर्मिकों को समागम हुआ है। इस संसार में विवेकियों को साधर्मी तुल्य कोई बंधु नहीं है । आप कौन हैं ? यहाँ कैसे आगमन हुआ ? कहाँ निवास किया है ? ये दोनों स्त्रियाँ कौन हैं? जिनसे स्वाति और अनुराधा नक्षत्र द्वारा चंद्रलेखा के समान आप सुशोभित हो रही हो ” वह कपट श्राविका बोली- “उज्जयिनी नगरी के एक धनाढ्य व्यापारी की विवाहित विधवा स्त्री हूँ । ये दोनों मेरी पुत्र वधुएं हैं। ये भी कालधर्म से भग्न वृक्षवाली लता ही भांति विधवा हो जाने से निस्तेज हो गई हैं। इन्होंने विधवा होते ही व्रत लेने के लिए मुझे से अनुमति मांगी थी, कारण कि "विधवा स्त्रियों का शरण व्रत ही है ।" तब मैंने कहा कि मैं अभी वृद्ध नहीं हुई मैं भी व्रत ग्रहण करूंगी, परंतु अभी तो तीर्थयात्रा द्वारा गृहस्थ जीवन का फल ग्रहण करेंगे । कारण कि व्रत लेने के पश्चात् तो भाव पूजा होती है, द्रव्यपूजा होती नहीं है। ऐसा सोचकर मैं और मेरी दोनों पुत्रवधुएं तीर्थयात्रा के लिए निकली हैं ।" अभयकुमार ने कहा कि, ‘आप आज मेरे अतिथि बनो, साधर्मिकों का आतिथ्य तीर्थ से भी अति पवित्र है ।' यह सुनकर वह अभयकुमार के प्रति बोली कि 'आप युक्त कहते हो, परंतु आज तो हमने तीर्थोपवास किया है, इसलिए हम आपके अतिथि कैसे बने ? ऐसी उनकी वृत्ति देखकर विशेष खुश होकर अभय ने कहा कि, तब कल प्रातःकाल में अवश्य मेरे घर आना।' वह बोली कि “एक क्षण में भी प्राणी अपना जन्म पूर्ण करता है, तो मैं कल प्रातःकाल में ऐसा करूंगी ऐसा सद्बुद्धि वाला मनुष्य कैसे बोले ?' ठीक है । तब आज तो भले ऐसे हो, कल प्रातः काल में ऐसा करूँगी' ऐसा सद्बुद्धि वाला मनुष्य कैसे बोले ?' ठीक है। तब आज तो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 252

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