Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 277
________________ सोलह देश का स्वामी था। महासेन आदि दस मुकुटुबद्ध राजाओं का नायक था और अन्य भी अनेक सामान्य राजाओं का नेता तथा विजेता था। सम्यग्दर्शन से पवित्र और तीर्थ की प्रभावना करने वाली एक प्रभावाली (रूपवती) प्रभावती नामकी पत्नि थी। उस प्रभावती के उदर से युवराज की धुरा को धारण करने वाला अभीचि नामका एक श्रेष्ठ पुत्र था, जो कि केशी नाम के राजा का भागिनेय (भाणजा) था। (गा. 327 से 331) इधर चंपानगरी में जन्म से ही स्त्री लंपट कुमार नंदी नामका एक धनाढ्य सोनी रहता था। वह जिस जिस रूपवती कन्या को देखता या सुनता उसे तत्काल पांच सौ सौनिया देकर विवाह कर लेता था। ऐसा करके अनुक्रम से उसके पांच सौ स्त्रियाँ हो गई। वह ईर्ष्यालु सोनी एक स्तंभवाले महल में उनके साथ क्रीड़ा करता था। उस सोनी के नागिल नामका एक अतिवल्लभ मित्र था। वह मुनियों का उपासक और शुद्ध पंच अणुव्रत का धारक था। एक बार पंचशैल द्वीप में रहने वाली दो व्यंतर देवियाँ शक्रेन्द्र की आज्ञा से उसके साथ नंदीश्वर द्वीप की यात्रा करने चली। उसका पति विद्युन्माली जो पंचशैलद्वीप का स्वामी था उसका मार्ग में जाते च्यवन हो गया। इसलिए उन देवियों ने सोचा कि ‘अपने किसी ऐसे मनुष्य को शोध ले कि जो मृत्यूपरान्त अपना पति बने।' ऐसा सोचती हुई वे चंपापुरी के पास से निकली वहाँ पाँचसौ स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करता हुआ वह कुमार नंदी सोनी उनको दिखाई दिया। तब उसे अपना पति बनाने को इच्छुक वे दोनों उनके पास आई एवं उसे अपना रूप दिखाया। यह देखकर कुमारनंदी ने उनको पूछा- तुम कौन हो? वे बोली कि, हे मानव! हम हासा और प्रहासा नामक देवियाँ हैं।' उनको देखकर वह स्वर्णकार उन पर मोहित होकर मूर्च्छित हो गया। जब उसे चेतना आई तब उसने क्रीड़ा करने की इच्छा से उनको प्रार्थना की। वे बोली कि 'तुझे हमारी इच्छा हो तो तू पंचशैल द्वीप मे आना।' ऐसा कहकर वे आकाश में उड़ गई। (गा. 332 से 341) पश्चात् उस सोनी ने राजा को द्रव्य देकर शहर में इस प्रकार पटह बजाकर उद्घोषणा कराई कि जो मुझे पंचशैलगिरि पर ले जाएगा, उसे मैं कोटि द्रव्य दूंगा।" किसी एक वृद्ध ने उस पटह को झेलकर धन ग्रहण किया, 264 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)

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