Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 342
________________ धर्मध्यान रूप आकाश में चंद्र के समान, निर्मल गंथार्थ के रत्नाकर भव्य प्राणी रूप कमल में सूर्य समान, कामदेव रूप हस्ती को मथन करने में केशरीसिंह रूप, संयमरूप धनवाले और करुणा के राशिरूप श्री यशोधर नामके सूरिवर हुए कि जिन्होंने अपने उज्जवल यश से इस जगत को परिपूर्ण कर दिया। उन सूरीश्वर ने श्री नेमिप्रभु जी ने जिसका शिखर पवित्र किसा ऐसे रैवतगिरि पर संलेखना करके अनशन ग्रहण किया। उसमें उन्होंने शुभध्यान पूर्वक तेरह दिन तक शांत मन में स्थिर रहकर सर्व को आश्चर्य उत्पन्न करके पूर्व महर्षियों की संयम कथाओं को सत्य करके बता दिया। (गा. 1 से 11) उनके शिष्य प्रद्युम्नसूरि हुए। अनेक जीवों को प्रतिबोध करने वालें और सर्व विश्व में अपने गुणगण को प्रख्यात करनेवाले उन सूरीश्वर ने श्रमण विषय में अमृत तुल्य ऐसा बीस स्थानक तप करके, प्रवचन रूप समुद्र में से निकले अर्थ रूप नीर द्वारा वर्षाकाल के मेघ के समान समग्र पृथ्वी को प्रसन्न करी थी। उन प्रद्युम्नसूरि के शिष्य गुणसेन सूरि हुए। वे सर्व ग्रंथ के रहस्य में रत्नमय दर्पण रूप, कल्याण रूप वल्ली के वृक्ष समान, करुणामृत के सागर प्रवचन रूप आकाश में सूर्य समान, चारित्रादि रत्नों के रोहणगिरि, पृथ्वी को पवित्र करने वाले और धर्म राजा के सेनापति थे। उन गुणसेनसूरि के शिष्य श्री देवचंद्र सूरि हुए जो कि इस पृथ्वी को पवित्र करने वाले जंगम तीर्थ रूप थे और स्याद्वाद वाणी रूप गंगानदी के लिए हिमालय रूप थे। बहुत तप की प्रभावना स्थान रूप और विश्व को प्रबोध करने में सूर्य रूप वे सूरि श्री शांतिचरित्र और ठाणा प्रकरण की वृत्ति करके परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। उन देवचंद्र सूरि के चरणकमल में भ्रमररूप हेमचंद्र नामके आचार्य हुए कि जिन्होंने उन गुरु के प्रासाद से ज्ञान संपत्ति का महोदय प्राप्त किया। __ (गा. 12 से 15) चेदी, दशार्ण, मालव, महाराष्ट्र, कुरु, सिंघु एवं अन्य दुर्गम देशों को अपने भुजवीर्य की शक्ति से हरि के तुल्य जीतनेवाले, परम आर्हत, विनयवान् एवं चौलुक्यकुल के श्री मूलराजा के वंश में हुए श्री कुमार पाल राजा ने एक बार उन श्री हेमचंद्रसूरि को नमन करके इस प्रकार कहा कि “हे स्वामी! निष्कारण उपकारक बुद्धि वाले यदि आप उनकी आज्ञा को प्राप्त करके नर्कगति त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 329

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