Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 332
________________ चलायमान हो जायेगे, चोर चोरी से, राजा कर से, और भूत भरे हों वैसे अधिकारी गण रिश्वत लेकर सर्व प्रजा को पीड़ित करेंगे। लोग स्वार्थ में तत्पर, पदार्थ से विमुख एवं सत्य, लज्जा तथा दाक्षिण्यता से रहित, साथ ही स्वजनों के विरोधी होंगे। शिष्य गुरु की आराधना नहीं करेगे। गुरुजन भी शिष्यभाव नहीं रखेंगे एवं उनको उपदेश द्वारा श्रुत ज्ञान नहीं देंगे। अनुक्रम से गुरुकुल में वास करना बंद करना पड़ेगा। देवगण प्रत्यक्ष नहीं होंगे। पुत्र पिता की अवज्ञा करेंगे, बहुएँ सर्पिणी जैसी होगी एवं सासुएं काल रात्रि जैसी होंगी। ___ (गा. 130 से 139) कुलीन स्त्रियाँ भी लज्जा छोड़कर दृष्टि के विकार से, हास्य से, आलाप अथवा अन्य प्रकार के विलासों से वेश्या का अनुसरण करेगी। श्रावक और श्राविकापने में हानि होगी। चतुर्विध धर्म का क्षय होगा। साधु साध्वी को पर्व दिन में या स्वप्न में भी निमन्त्रण नहीं होगा। खोटे तोले-माप चलेंगे। धर्म में भी शठता होगी एवं सत्पुरुष दुःखी एवं दुर्जन सुखी रहेंगे। मंत्र, मणि, औषधि, तंत्र, विज्ञान, धन, आयुष्य, फल, पुष्प, रस, रूप, शरीर की ऊँचाई, धर्म एवं अन्य शुभ भावों की पाँचवें आरे में प्रतिदिन हानि होगी। इसके पश्चात् छठे आरे में तो अत्यधिक हानि होगी। इस प्रकार पुण्य के क्षय वाला काल प्रसारित होने पर जिसकी बुद्धि धर्ममय रहेगी, उसका जीवन सफल होगा। इस भरतक्षेत्र में दुःषमकाल में अंतिम दुःप्रसह नामक आचार्य, फल्गु श्री साध्वी, नागिल नाम का श्रावक एवं सत्यश्री नामकी श्राविका, विमलवाहन नामक राजा एवं सम्मुख नामक मंत्री होगा। दो हाथ प्रमाण शरीर होगा। बीस वर्ष का उत्कृष्ट आयुष्य होगा। दुःप्रसहादि चारों से उत्कृष्ट छठ का तप कर सकेंगे। दशवैकालिक के वेत्ता, वे चौदह पूर्वधर की सम गणना होगी। ऐसे मुनि दुःप्रसहसूरि पर्यन्त संघरूप तीर्थ को प्रतिबोध करेंगे। इस कारण जो कोम धर्म नहीं करती उसे संघ से बाहर कर देना। दुःप्रसहाचार्य बारह वर्ष गृहवास में एवं आठ वर्ष दीक्षा में निर्गमन करके अंत में अट्ठम तप करके मृत्यु प्राप्त कर सौधर्म कल्प में जायेंगे। उस दिन पूर्वाह्न में चारित्र का, मध्याह्न में राजधर्म का तथा अपराह्न में अग्नि का उच्छेद हो जायेगा। इस प्रकार इक्कीस हजार वर्ष का प्राणवाला दुषमकाल व्यतीत होने के पश्चात् उतने ही प्रमाणवाला एकान्त दुःषम दुःषम काल प्रवर्तेगा। उस समय त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 319

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