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जैनमहभारत rmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm बात चीत करते देखा सुना कहीं था। आज पहली बार उसके सामने ऐसा सुन्दर हंस आया था, जिसने आपके सौन्दर्य के साथ ही साथ मानव-सुलभ-भाषा में बात चीत कर उसे विमुक्त कर दिया । इसलिये उसने हंस की बातों का विश्वास कर उसे छोड़ते हुए कहा हे मधुर भाषी प्रिय पक्षी राज ! लो मै तुम्हें छोड़ती हूँ। तुम स्वतन्त्र होकर बतलाओ कि मेरे योग्य क्या कार्य है तुम मुझे वह कौन सा प्रिय सन्देश देने आये हो जिसका पालन कर मै सौभाग्यशालनी बन सकती हूँ । राजकुमारी के हाथों से उन्मुक्त हो वह राजहंस पास ही गवाक्ष पर जा बैठी और अत्यन्त प्रिय मधुर वाणी से उसे इस प्रकार कहने लगा
हे राजकुमारी ! सुनो, यदुवश में उत्पन्न वसुदेव कुमार परम गुणवान् और युवा हैं। रूप में तो मानो वह प्रत्यक्ष कामदेव का ही रूप है। जिस प्रकार पुरुषों में वह सर्वश्रेष्ठ सुन्दर है उस ही प्रकार स्त्रियों में विधाता ने तुम्हें बनाया है। ऐसा प्रतीत होता है कि तुम दोनों की अनुपम जोडी बनाने के लिए यह मणी-कान्चन योग हुआ है। यदि तुम उसे पति रूप में प्राप्त कर लोगी तो तुम्हारा जीवन सार्थक हो जावेगा। मैं उनसे तुम्हारे रूप गुण की चर्चा पहले ही कर आया हूं। अत वे भी तुम पर पहले ही से अनुरक्त हैं अतः तुम्हारे स्वयवर में वे आवेगे ही। जिस प्रकार आकाश में छोटे मोटे अनेक ग्रह नक्षत्रों के रहते हुए भी चन्द्रमा के पहचानने में किसी को कोई कठिनाई नहीं होती उसी प्रकार पहली झलक में उनको तुम पहचान जाओगी। अपनी अनुपम सौन्दर्य समन्वित यौवन की कान्ति व तेजस्वीता के कारण छिपाने पर भी वे छिप न सकेगें और स्वयवर में उपस्थित हजारों राजकुमारों मे से तत्काल तुम्हारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेगे। इसलिए तुम बड़ी सावधानी और सजगता के साथ काम लेना और अन्य किसी विद्याधर या देवता के मोह में मत पड़ जाना अब मुझे आज्ञा दो। मैं गगन विहारी पक्षी हूँ । अनन्त आकाश में स्वछन्दता-पूर्वक विचरण करते हुए सरोवरो में खिले हुए फूलों के साथ नानाविध लोलायें करते रहने का ही हमारा स्वभाव है । इसलिए अब और मैं अधिक देर आपके पास नहीं ठहर सकता । यह कहते हुए इस अपने हिम-शुभ्र पंखों को पसार उड़ने की तैयारी करने लगा।