Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 585
________________ द्रौपदी स्वयंवर कटपुर के राजा भीष्मक पुत्र रुक्म । विराट नगर के महाराज विराट के कीचक प्रमुख सौ भाइयों आदि सुप्रसिद्ध राजाओं की भिन्न भिन्न दूत भेजकर निमन्त्रित किया । तथा अन्य शेष राजाओं के पास एक और विशेष दूत भेजा जिसने ग्राम और नगरों में जाकर सभी राजाओं को निमन्त्रित किया। राजाओं ने भी प्रसन्न मन से निमन्त्रण पत्र स्वीकार करते हुए दूत को उसी समय ससम्मान विदा कर दिया। ___ उधर हस्तिनापुर नगर में महाराज पाण्डु अपने भाइयों तथा पुत्रों के साथ आनन्द पूर्वक राज्य कर रहे थे। एक बार महाराज पांडू अपनी राज्य सभा में स्वर्ण निर्मित मणि रत्नमय एक उच्च सिंहासन पर विराजमान थे। उनका शरीर दिव्याम्बर तथा बहु मूल्य आभरणों से सुसज्जित था। उनके पार्श्व भागों में पितामहभीष्म, धृतराष्ट्र, विदुर, द्रोण आदि गुरुजन स्थित थे। उस समय महाराज पाण्डू की रूप छटा मन्द्राचल पर उदित सूर्य की भाँति प्रतिभाषित हो रही थी। सभाजनो से परिवृत्त हुये वे साक्षात् देव सभा में स्थित देवराज इन्द्र की भांति देदिप्यमान हो रहे थे। सिंहासन के दोनों ओर बन्दीजन चॅवर ढोल रहे थे । एक ओर कवियो की स्तुति गान का माधुर्य सभा में अनुपम मोहकता ला रहा था। तो दूसरी ओर गान्धर्वो का तु बरू नाद सभा जनों को प्रति मोहित कर रहा था । साथ ही महाराज के मन को रजित करने के लिये वारांगनाएँ अपनी अनुपम शास्त्रीय नृत्य कला का प्रदर्शन कर रही थीं। इतने में ही द्वारपाल ने प्रवेश किया और नमस्कार करके निवेदन करने लगा हे राजन् । द्वार पर काम्पिल्यपुर के महाराज द्र. पद का दूत कोई सदेश लेकर आया है, क्या श्राज्ञा है ? __दूत की सूचना पाकर महाराज ने तत्काल उसे उपस्थित होने की आज्ञा दे दी। दूत ने अन्दर प्रवेश किया और महाराज पाण्डु तथा पितामह आदि को प्रणाम करके इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया-हे कुरुकुल मार्तण्ड | महाराज द्र पद ने अपनी द्रोपदी नामक राजकुमारी के लिये स्वयवर का आयोजन किया है जिसमें देश देशांतरों के सभी राजाओं को आमन्त्रित किया है । अतः हे राजन् उन्होंने आपको सविनय कहलाया है कि आप अपने कामदेव स्वरूप पांचों पुत्रों तथा दुर्योधनादि पराक्रमी सौ भाइयों को साथ लेकर महोत्सव में अवश्य भाग लें।

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