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विरोध का अकुर
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काटने लगा। यह देख द्रोग चिल्ला पडे तुम यह क्या कर रहे हो एकलव्य | अगूठा काट कर तुम अपने आपको धनुप चलाने से सर्वथा अयोग्य करने लगे। ___ "गुरुदेव । इस अगूठे के द्वारा आप अब विश्वास कर सकेंगे कि मैं कभी किसी निरपराधी जीव पर बाण नहीं चलाऊगा, मेरे पाप का प्रायश्चित यही है, कि उस अंगूठे को जिस के द्वारा मैं ने निरपराधी अबोध जीवों की हत्या की, मैं उसे नष्ट करना चाहता हू। एकलव्य ने विनय पूर्वक कहा।
सम्पूर्ण शक्तियाँ जीवन सिद्धि के लिये साधनभूत है किन्तु उसके प्रयोग मे अन्तर होता है, मनुष्य जब इन्द्रियादि प्राप्त शक्तियों का सदुपयोग करने लगता है तो वे ही शक्तियां जीवन साफल्य के साधन भूत हो जाती हैं और जब उसका दुरुपयोग करने लग पडता है तो जीवन पतन का कारण बन जाती है। अतः एकलव्य तू इन शक्तियों का सदुपयोग कर भविष्य में तेरे को सुखी बनाने में समर्थ होगी। अगुष्ठ को काट देने से कोई लाभ नहीं, यह एक सहायक शक्ति है, जो शक्ति दूसरो का नाश कर सकती है वह निर्माण भी कर सकती है। ___ जिसकी सहायता से तूने जीवहिंसा की है, उसी से तू उनकी रक्षा भी कर सकेगा। अत। प्रकृतिप्रदत्त शक्ति को व्यर्थ नष्ट कर देना कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। ___यदि तू अगूठ का दान देना चाहता है तो अगुष्ठ के रहते हुए तू धनुषादि में इसका प्रयोग मत करना। यह अगुष्ठ अब तेरा नहीं मेरा हो चुका है। ___ क्योंकि मेरी दत्तिणा का नकल्प करने के हेतू ही इने काटने लगा था 'पत. इस पर मेरा अधिकार है। द्रोणाचार्य ने शिक्षा एव अविकार पूर्ण शब्दों में यहा।