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महाभारत नायक वलभद्र और श्रीकृष्ण
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इसी प्रकार देवकी यशोदा से कृष्णचन्द्र की प्रशसा करती रही। कितनी ही देर तक वह कृष्ण को देखती रही। पर नेत्र तृप्त न हुआ। उसने बारम्बर प्यार किया, मिठाई और फल दिए। और वहा से वापिस चली आई। इसी प्रकार वह प्रतिदिन गौ पूजन के बहाने आ जाती, कृष्ण को खिलाती और वापिस हो जाती। कृष्ण धीरे धीरे वृद्धि की ओर जाने लगे।
X xx कृष्ण दूध, दही बड़े चाव से खाते । यशादा प्रतिदिन उन्हें मक्खन और दही खिलाती, पर वे तृप्त न होते। कभी कभी स्वय भी उठा कर खा लेते । यशोदा प्रतिक्षण उन्हें अपनी आँखों के सामने ही रखना चाहती, पर वे माता की नजर बचा कर घर से बाहर आकर खेलने लगते । सभी बालक उनके चारों ओर एकत्रित हो जाते, मनोविनोद व क्रीडा में कृष्ण को मुख्य स्थान देते और उनसे स्नेह करते । वे बालकों और वृद्धों सभी के प्रिय बन गए।
वैष्णवों में एक कथा आती है । बडी गूढ़ है वह कथा । कृष्ण को वालपन में मिट्टी खाने की लत पड़ गई। यशोदा जब भी उन्हें मिट्टी खाता देख लेती तुरन्त दौड़ कर मिट्टी मुह से निकाल कर मक्खन दे देती। पर कृष्ण को जब अवसर मिलता पुन मिट्टी मुह में रख लेते। एक दिन यशोदा ने उन्हें मिट्टी खाते देखा। वह दौड कर उनके पास पहुँची, उस ने कृष्ण का मुह खोल कर देखा, मिट्टी निकालने लिए, पर जव उस ने मुह खोला और अन्दर देखा तो क्या देखती है कि वहाँ सारा ब्रह्माण्ड है । सारा विश्व कृष्ण के मुह में विद्यमान है । बस वह समझ गई कि कृष्ण साधारण बालक नहीं वह तो भगवान है।
इस कथा का अर्थ है कि मनुष्य तुझ में ही सारा ब्रह्माण्ड है। तेरी आत्मा में सभी आत्माओं का रूप है । + +
+ बालक कृष्ण ज्यों ही कुछ बडे हुए वे गौ वंश से बहुत प्रेम करने लगे। वे गौ की गर्दन से चिपट जाते, बछड़ों से क्रीड़ा करते। स्वय उन्हें चराने जंगल चले जाते। वहां सारे ग्वाले उनके चारों ओर एकत्रित हो जाते । वे सभी के सरताज बन गए, सभी के स्नेह पात्र ।
बाल्यकाल की यूं तो कितनी ही कथाएं प्रचलित हैं। परन्तु कुछ