Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 594
________________ जैन महाभारत दिखाई दे रही है । भला अपार बाहुबली लक्ष्यरक्षक जिस प्रयत्न में विफल रहे फिर भला गदा योद्धी इसमें कैसे सफल हो सकता था। इस प्रकार क्रमश शल्य, दुशासन, सुयोधन, भगदत्त, भूरिश्रवा, जयद्रथ, महासेन आदि अनेको प्रचण्ड वीरों ने अपना पूरा २ जोर लगाया किन्तु लक्ष्य बंध न हो सका । होता भी कैसे जबकि द्रोपदी का मानस कमल तो अजुन रूपी सूर्य के लिये कामना कर रहा था। ___ बड़े बड़े योद्धाओं के परास्त हो जाने पर चारो ओर निराशा का वातावरण छा गया । लक्ष्य वेध की इस अपार लीला से सभी आश्चर्य चकित तथा स्तब्ध बैठे थे। उनके चेहरों पर घोर उदासीनता तथा असफलता स्पष्ट रूप से लक्षित हो रही थी। इस वातावरण को देख महाराज द्रपद मन ही मन अत्यन्त दुखित हुये सोचने लगे कि मैंने व्यर्थ मे हो इतनी बड़ी शर्त रख कर भूल की देखो यह इस मंडप में कर्ण, दुर्योधन जैसे बड़े रूपवान पराक्रमी, कलाविशेषज्ञ उपस्थित हैं। इनमे से किसी को भी द्रोपदी अपनी इच्छा के अनुसार वर माला पहना देती। वह भी उसे पाकर अपने को धन्य समझता । किन्तु अब क्या हो सकता है।" इस प्रकार सोचते हुये भी उन्हे इस समस्या का कोई हल नहीं मिल रहा था। अन्त मे उन्हो को एक युक्ति याद आई कि वह मंडप मे अवस्थित योद्धाओं को ललकारे जिससे उनके रक्त में उत्साह का संचार हो । वे कहने लगे-"उपस्थित महानुभाव राजा गण ! मुझे अत्यन्त दुःख के साथ कहना पड़ता है कि आज क्षत्रियत्व का अपमान स्पष्ट रूप से लक्षित हो रहा है। क्या राजकुमारी द्रोपदी जन्म भर अविवाहित ही रहेगी? क्योकि अब तक जितने भी योद्धा उठे जिनके नाम शौर्य आदि से चराचर मात्र भयभीत होता था, जिनके वीरत्व की 'धाक किसी को सामने अड़ने नहीं देती थी। जो अपनी कलाओं से विश्व विजयी बनने के स्वप्न लिय बैठे थे तथा जिसको उन पर पूर्ण अभिमान था आज उसका दिवाला निकल गया है। क्या यह क्षत्रियत्व का अपमान नहीं ?" पद का इतना कहना ही था कि कामदेव स्वरूप वीर अर्जुन के भुजदड फडक उठे । आँखो मे रक्त उतर आया। किन्तु गुरुजनो

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