Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 566
________________ ५४२ जेन महाभारत wimmmmm है तू , तुझे इतना भी ध्यान नहीं है कि तुम जैसे नीच को राज कन्या नहीं दी जा सकती। तू ने हमारा अपमान किया है। इसका दण्ड तो यह था कि अभी तुझे मरवा दिया जाता, पर तेरी वीरता के कारण हम तुझे वह दण्ड नहीं देते। तुरन्त हमारे दरबार से निकल जाओ।" डोम के वेष मे छुपा “प्रद्युम्न कुमार दरबार से यह कहकर चला आया-"आप अपना दिया वचन पूर्ण नहीं करना चाहते तो न सही। आपने कहा था मैने मॉग लिया। मांगने से कोई अपराध हो गया हो तो क्षमा करे।" जिस समय रात्रि की अवनिका नगर पर पूर्ण रूप से छा गई, महल वाले सो गए, प्रद्युम्न ने प्रज्ञप्ति विद्या के प्रभाव से चुपके से छुप कर महल में प्रवेश किया । ओर वह ढूढ़ता ढूढता वैदर्भी के कमरे में पहुंच गया । वह उस समय तक जाग रही थी। जाग रही थी प्रद्युम्न कुमार की याद मे । वह उसका चित्र अपनी कल्पना शक्ति से बना रही थी। वह कामना कर रही थी कि प्रद्युम्न कुमार शीघ्र ही आकर उसे अपनी सह धर्मिणि बनाले । प्रद्युम्न कुमार ने ज्यो ही कमरे में प्रवेश किया, वैदर्भी की दृष्टि उस पर जा टिकी । उस समय वह अपने वास्तविक रूप मे था । बह मूल्य वस्त्र पहन रक्खे थे, अस्त्र शस्त्रों से सज्जित था। अचानक एक अज्ञात व्यक्ति के इस प्रकार रात्रि मे आ जाने मे वैदर्भी घबरा उठी। यह देखकर प्रद्युम्न कुमार ने कहा-"आप घबराइये नहीं। मैं प्रद्युम्न कुमार हूँ । द्वारिका से आया हूं।" माता रुक्मणि ने एक पत्र दिया है।' प्रद्युम्न कुमार का नाम सुनते ही उसका मन प्रफुल्लित हो गया। उसने प्रणाम किया और स्वागत मे खड़ी हो गई। पूछा-"आप इतनी रात को क्यो आये ?" निकट पहुंच कर प्रद्युम्न कुमार बोला-कदाचित तुम्हे ज्ञात नहीं, तुम्हारे पिता जी नहीं चाहते कि मेरा तुमसे विवाह हो, पर मैं अपनी माँ से तुम्हारे रूप को प्रशसा सुन चुका हूँ। जब से तुम्हारे बारे में सुन चुका हूं । बस तुम्हारे लिए व्याकुल रहता था। आज अवसर पाकर यहा आया हूँ, यह जानने के लिये कि क्या तुग भी मुझे वाहती हो।" ---... वैदर्भी के कपोल आरक्त हो गए, उसने नजर नीची कर ली और 'पाने लगी

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