Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 583
________________ द्रोपदी स्वयवर . .. .. ५५६ की आज्ञा दी। पश्चात् अनेकों राजकर्मचारियो के साथ दूत ने प्रवेश किया। श्रीकृष्ण दूत को सम्मान देकर बोले "कहो कैसे आगमन हुआ, राजा द्र पद तो कुशल हैं ?" । दूत ने हाथ जोड़कर निवेदन किया-महाराज पांचाल देश के अधिपति द्र.पद सकुशल हैं । उनका आग्रह भरा सन्देश है कि आप राजकुमारों सहित राजकुमारी द्रोपदी के स्वयवर महोत्सव में अवश्य भाग लें । दूत द्वारा इस मगल सूचना को सुनकर श्रीकृष्ण ने उचित समय पर उत्सव में सम्मिलित होने की स्वीकृति प्रदान की और दूत को सम्मान पूर्वक विदा दी। दूत के जाने के पश्चात् श्रीकृष्ण ने समुद्रविजय प्रमुख गुरुजनों तथा बलदेव, अक्रूर, अनाधृष्टि आदि भाइयों, प्रद्युम्न, शाम्ब आदि राजकुमारों को साथ लेकर प्रस्थानोद्यत हुए। उधर रथ पर सवार हुवा दूसरा दूत चेदी राष्ट्र की राजधानी शुक्तिमति को जा पहुँचा । जहाँ कि उस समय दमघोष पुत्र शिशुपाल न्यायपूर्वक राज्य कर रहा था । दूत ने राज्य सभा में प्रवेश कर और कावद्ध प्रार्थना की कि हे राजन् । महाराज द्रपद ने अपनी पुत्री द्रोपदी के स्वयवर का आयोजन किया है, अत महाराज ने आपको अपने पाँचों भाइयों सहित सम्मिलित होने की प्रार्थना की है। वहाँ देश के कोने कोने से राजा महाराजा भाग ले रहे हैं, अतः आपकी उपस्थिति भी आवश्यक है।" दूत की बात को सुनकर शिशुपाल का मन मयूर नृत्य कर उठा। उसे अपार हर्ष हुआ अपनी वीरता के प्रदर्शन का अवसर पाकर । क्योंकि उन्हें रुक्मणि स्वयवर पर तो उन्हें हताश होना पड़ा था। अत इस स्वर्णिम अवसर को खाली नहीं जाने देना चाहिये । यही सोचकर तत्काल उन्होंने आने की स्वीकृति दे दी । स्वीकृति पाकर दूत उसी समय काम्पील्यपुर को लौट आया। . . . . . . . . . . .

Loading...

Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617