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जेन महाभारत
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प्रशंसा सुनते सुनते ही आत्म विभोर हो गई और अनायास ही निश्चय कर बैठी कि वह विवाह करेगी तो उसी नृप से नहीं तो श्राजीवन अविवाहित रहना पसन्द करेगी ।
"कौन है वह नृप' अंधक वृष्णि ने पूछा ।
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" वह हैं हस्तिनापुर नरेश महाराजा पाण्डू राजा ने सुना और मौन रह गए। परन्तु कुन्ती ने पाण्डू को अपने स्वप्नों का देवता मान लिया । वह चाहती थी कि पिता जी भी तुरन्त ही हॉ कह दे । किन्तु वे तो मौन थे । चित्रकार को भी उन्हें मोन देखकर कुछ निराशा सी हुई । वह तो समझता था कि नृप कुछ न कुछ उत्तर अवश्व देगे । पर अब यह सोच कर मौन रह गया कि सम्भव है नृप विचार कर रहे हो । - नप ने चित्रकार को बहुमूल्य उपहार, पुरस्कार देकर विदा किया ।
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व्याकुल पाण्डू को कहीं चैन नहीं, न महल में, न मित्रो में, और न क्रीड़ा स्थल से । उनकी वही दशा थी
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दिल में आता है कि ए दोस्त मयखाने में चल फिर किसी शहनाजे लाला रुख के काशाने में चल गर वहाँ मुमकिन नहीं तो दोस्त वीराने में चल । ऐ गमे दिल क्या करू ं, ऐ वह शतेदिल क्या करू
उनका मन कहीं नहीं लगता, अतः व्याकुल हृदय लोगो की अन्तिम मजिल बन की ओर चल पड़े । उद्यान को छोडकर बन की ओर, मन बहलाने और एकान्त मे कुन्ती के लिए तड़पने के लिएबन में पहुंचे। चारों ओर दृष्टि डाली - पर ऐसी कोई वस्तु नहीं दिखाई दी जिसमे उन का मन खो जाये और वह भूल जाय अपनी व्याकुलता और टीस को ।
किसी के चीत्कार सुनाई दिये । उनके पग उस ओर उठ गए। एक घायल खेचर ( विद्याधर ) चीत्कार कर रहा था । दुखी जन को देख कर उनकी सहायता के लिए दौड़ पड़ने वाले परोपकारी जीव कम ही है । हां किसी को पीड़ित देखकर सहानुभूति के दो बोल कह देने वाले अथवा शाब्दिक करुणा दर्शाने वाले अधिक संख्या मे मिल जायेंगे । परन्तु व्याकुल पाण्डू किसी दुखी व पीड़ित व्यक्ति के चीत्कार सुन कर शाब्दिक सहानुभूति दर्शाने वाले नहीं थे, वे उसके पास पहुँचे ।