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जैन महाभारत
श्री कृष्ण से न रहा गया, यद्यपि उन्हे स्वयंवर में निमंत्रित नहीं किया गया था, और वे स्वयं इस परीक्षा मे उतरना उपयुक्त नहीं समझते थे, पर वाग्वाण उनके हृदय में चुभ गए, वे तुरन्त अपने स्थान से उठे, बलराम ने उन्हें रोक कर कहा- कहाँ जाते हो, तुम धनुष को हाथ न लगाना । हम निमन्त्रित नहीं है ।" परन्तु श्रीकृष्ण ने एक न सुनी, वे शीघ्र ही मंच पर गए । बिजली के समान वे वहाँ पहुचे और ख झपकते ही धनुष उनके हाथ में था, उन्होंने बाण लिया, धनुष पर चढ़ाया प्रत्यञ्चा को अपने कान तक खींचा, चारों ओर घूमकर दर्शकों को दिखाया और फिर धनुष को वहीं भूमि पर रख दिया उसके इस अद्भुत शौर्य को देखकर सभी नरेश चकित रह गए।
इधर कस ने जब देखा कि कृष्ण ग्वाले ने धनुष उठाया और वाण चढ़ानेका सफल प्रदर्शन किया और जब उसे यह भीज्ञात हुआ कि कि वही ग्वाला है जिसने केशी अश्व व अरिष्ट वृषभ की हत्या की थी तो वह आग बबूला हो गया। उसने सोचा सम्भव है यही हो वह उद्दण्ड छोकरा, जिसे ज्योतिषियों ने मेरा बैरी बताया है ।
इसलिए वहीं सिंहासन पर बैठा हुआ ही चिल्लाने लग पड़ा - इस धनुष चढ़ाने वाले छोकरे को शीघ्र ही समाप्त कर दो, देखो यह इस मण्डप से बाहर न निकलने पाये, इसका काम यहीं तमाम कर देना चाहिए। मेरे वीर सामन्तों व सरदारो ! यदि यह तुम्हारे हाथों से नौ दो ग्यारह हो गया तो तुम मेरी दृष्टि से बच न पाओगे। यह नीच सहस्रों राजा राजकुमारों के मान को मर्दन कर सत्यभामा का वरण करना चाहता है ? नहीं, यह कदापि नहीं हो सकता १
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कंस के इस प्रकार सकेत पाते ही सैनिक, द्वारपाल आदि एक साथ श्री कृष्ण पर टूट पड़े किन्तु कृष्ण तो पहले ही तैयार खड़े थे । अतः अनावृष्टि को साथ लेते हुए बादलों में घिरे हुए सूर्य की त्वरित गति की भाति पदलात, मुष्टिक आदि का प्रहार करते मण्डप से बाहर निकल आये ।
और मडप से बाहर आते ही अनावृष्टि ने राम कृष्ण को रथ में बैठाकर वसुदेव के वासस्थान पर ले गया। वहां पहुंच कर अनाधृष्टि ने वसुदेव के पास जाकर कहा - 'सारे क्षत्रिय नरेशों को वहां धनुष को देखकर पसीना छूट रहा था मैंने क्षत्रियों की लाज रखने