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जैन महाभारत
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अवश्य करेगा और उसने उसे वहीं मनुष्यत्व के संबध में शिक्षा दी । और न्याय चरित्र और धर्म का बोध कराया ।
वापिस आकर उसने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि उस की भूल को क्षमा कर दे और सुमार्ग पर चलने का उसे अवसर प्रदान करें । उसे इसी समाज मे आकर सच्चरित्र बन कर दिखाने का अवसर दे ।
किन्तु श्रीकृष्ण अपने आदेश को वापिस नहीं लेना चाहते थे, पर वह प्रद्युम्न कुमार को निराश भी नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होने बहुत सोच समझकर एक ऐसी शर्त शाम्बकुमारके नगरमे वापिस आनेके लिए रक्खी जो प्रत्यक्ष में पूर्ण होने योग्य प्रतीत नहीं होती थी । उन्होंने कहा कि यदि सत्यभामा शाम्ब कुमार को अपने साथ हाथी पर बैठाकर महल में ला सके तो वह आ सकता है ।"
प्रद्युम्न कुमार ने शर्त सुनी तो वह भी परेशान हो गया क्योंकि वह जानता था कि सत्यभामा कभी भी शाम्ब कुमार को वापिस लाने का यत्न करने को तैयार नहीं हो सकतीं । जब उसने वह शर्त शाम्ब कुमार को जाकर बताई तो शास्त्र कुमार ने निराश होकर कहा - " भ्राता जी । यह तो असभव है । पिता जी ने ऐसी शर्त रक्खी है जिसके पूर्ण होने की संभावना ही नहीं क्योंकि सत्यभामा तो वैसे ही मुझ से चिढ़ती है, वह भला क्यों मुझे विपत्ति से लेने आयेगी ?"
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"हॉ, लगता तो ऐसा ही है ।"
"तो क्या मुझे निराश होना पड़ेगा ?"
प्रद्युम्न कुमार चिन्ता मग्न था उसने कहा - मै स्वय व्याकुल हूँ | कोई उपाय समझ में नहीं आता । पिता जी इस शर्त से टस से मस नहीं होंगे। फिर काम बने तो कैसे ?"
शाम्ब कुमार के नेत्र छल छला आये - " तो फिर क्या मुझे इसी प्रकार विपिन में भटकते फिरना है । क्या आपके रहते भी मुझे इसी प्रकार टोकरें खानी पड़ेगी ?"
उसकी बात से प्रद्युम्न कुमार का हृदय द्रवित हो गया, उसने कहा - "भैया ! पिता जी का दिया दण्ड कुछ दिन तो भोगे ही। फिर मैं कोई न कोई उपाय अवश्य ही करू गा ।"
शाम्ब कुमार को आश्वासन देकर प्रद्युम्न कुमार चला आया । पर उसे चैन नहीं थी, वह शाम्ब कुमार को वापिस लाने की सोचता रहा । प्रद्युम्न कुमार ने अपनी विद्या के बल से ऐसा ही चमत्कार कर