Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 595
________________ द्रौपदी स्वयंवर ५७१ . की बिना पाना उन्होंने अपने आपको प्रगट करना उचित न समझा। अत शान्त ही बैठे रहे। ___इतने में धातु ने पाण्डु की ओर संकेत करते हुए बताया कि हे सुलक्षणे । कुरु वंश के अलंकार रूप महाराज पाण्डु अपने पाँचों पुत्रों सहित बैठे हुए इस प्रकार शोभित हो रहे हैं मानो कामदेव अपने पाँचों वाणों को कर में धारण किये शोभित हो रहा है। इनके ठीक दाहिने पक्ष में अतिशय शूरवीर, सद्गुणी तथा शान्त एव सत्य की प्रतिमूर्ति धर्मराज युधिष्ठिर बैठे है,तथा उनके पार्श्व भाग में महाबली गदाधारी भीम हैं जो इतने साहसी है कि बालकों की गेद की भॉति रणक्षेत्र में बड़े बडे उन्मत्त हाथियो को क्षण मात्र में पछाड़ देते हैं । ठीक इनके निकट ही इनके लघु भाई धनुषधारी अर्जुन बैठे हैं, जो आज समग्र पृथ्वीतल पर धनुर्विद्या में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं । यह इतने तोदण लक्ष्यभेदी हैं कि कोई किसी आवरण की ओट में भी इनके वाण मे नहीं बच सकता। रणांगण में इनके सामने आते हुये बड़े बड़े शूरवीर भी कॉपते हैं। असाधारण कौशल तथा अन्य वीरोचित गुणों के साथ यह परम गुरु भक्त भी हैं, और उसी के प्रभाव से इन्हें राधा वेध का विशेष लक्ष्य ज्ञान प्राप्त हुआ है। अत मुझे विश्वास है कि यह वीर अवश्य लक्ष्य वेध करेगा। ___धाय के मुख से अर्जुन की प्रशसा सुन द्रोपदी मन ही मन अत्यन्त प्रसन्न हुई । और उसका मुरझाया हुआ मुख कमल विकसित हो उठा। चिरकाल की मनोगत प्रतीक्षा अपना साकार रूप ले आई। क्योंकि वह तो अपने आपको अर्जुन के चरणों में पहले ही सर्वात्मना समर्पित कर चुकी थी। पश्चात् गुरुजनों की आज्ञा पाकर इष्ट मन्त्र का उच्चारण करता हुआ अर्जुन सिंह की भॉति तीव्र गति से वेदी के पास पहुच गया। और तत्काल धनुष को हाथ में उठा प्रत्यचा चढ़ाई और भीषण टकार शब्द किया जिसे सुनकर सारा जन समुदाय काँप उठा । अनायास ही धनुष ध्वनि को सुनकर सभी अर्जुन की ओर देखने लगे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि अर्जुन कब गया कैसे वनुष उठाकर टकारव शब्द किया । कोई उसकी इस क्रिया पर प्रसन्न मुद्रा से देख रहा था तो कोई आश्चर्य चकित होकर। कितने ही असफल राजाजन

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