Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 5
________________ प्रातः प्रतिदिन जो पढ़ते हैं, अपने दुःख संकट हराते हैं ||२५|| जोन वकार की भक्ति करते, देव भी उनकी सेवा करते ||२६|| जिस जिसने इसे जपा हैं, वही स्वर्ण सैम खूब तप हैं ||२७|| तप-तप कर कुंदन बन जाता, अंत में मोक्ष परम पद पाटा ||२८|| जो भी कंठहार कर लेता, उसको भव भव में सुख देता ||२९|| जिसने इसको शीश पर धारा, उसने ही रिपु कर्म निवारा ||३०|| विश्वशान्ति का मूल मंत्र हैं, भेदज्ञान का महामंत्र हैं ||३१|| जिसने इसका पाठ कराया, वचन सिद्धि को उसने पाया ||३२|| खाते-पीते-सूते जपना, चलते-फिरते संकट हराना ||३३|| क्रोध अग्नि का बल घट जावे, मंत्र नीर शीतलता लावे ||३४|| चालीसा जो पढ़े पढावे, उसका बेडा पार हो जावे ||३५|| क्षुल्लकमणि शीतलसागर ने प्रेरित किया लिखा 'अरुण' ने ||३६|| तीन योग से शीश नवाऊ, तीन रतन उत्तम पा जाऊं ||३७|| पर पदार्थ से प्रीत हटाऊं, शुद्धत गुण गाऊ ||३८|| प्रभु! बस यही वर चाहूँ, अंत समय नवकार ही ध्याऊ ||३९|| एक-एक सीधी चढ़ जाऊं, अनुक्रम से निजपद पा जाऊं ||४०|| पंच परम परमेष्ठी हैं, जग में विख्यात | नमन करे जो भाव से, शिव सुख पा हर्षात || 5

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