Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 44
________________ श्री सम्मेद शिखर पर आये, अजर अमर पद तुमने पाये ॥ निष्पृह कर उद्धार जगत के, गये मोक्ष तुम लाख वर्ष के । आंक सकें क्या छवी ज्ञान की, जोत सुर्य सम अटल आपकी ।। बहे सिन्धु सम गुण की धारा, रहे सुमत चित नाम तुम्हारा ।। नित चालीस ही बार पाठ करें चालीस दिन । खेये सुगन्ध अपार, शांतिनाथ के सामने ।। होवे चित प्रसन्न, भय चिंता शंका मिटे । पाप होय सब हन्न, बल विद्या वैभव बढ़े। 44

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