Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 23
________________ सारे राज पाट को तज के, तभी मनोहर वन में पहुंचे || तप कर केवल ज्ञान उपाया, चैत सुदी पूनम कहलाया | एक सौ दस गणधर बतलाए, मुख्य व्रज चामर कहलाए || लाखों मुनि आर्यिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों | संख्याते तिर्यच बताये, देवी देव गिनत नहीं पाये || फिर सम्मेदशिखर पर जाकर, शिवरमणी को ली परणा कर पंचम काल महा दुखदाई, जब तुमने महिमा दिखलाई || जयपुर राज ग्राम बाड़ा है, स्टेशन शिवदासपुरा है | मूला नाम जाट का लड़का, घर की नींव खोदने लागा || खोदत-खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनता को बतलाई | चिन्ह कमल लख लोग लुगाई, पद्म प्रभु की मूर्ति बताई || मन में अति हर्षित होते हैं, अपने दिल का मल धोते हैं | तुमने यह अतिशय दिखलाया, भूत प्रेत को दूर भगाया || भूत प्रेत दुःख देते जिसको, चरणों में लेते हो उसको | जब गंधोदक छींटे मारे, भूत प्रेत तब आप बकारे || जपने से जब नाम तुम्हारा, भूत प्रेत वो करे किनारा | ऐसी महिमा बतलाते हैं, अन्धे भी आंखे पाते है || प्रतिमा श्वेत-वर्ण कहलाए, देखत ; ही हिरदय को भाए | ध्यान तुम्हारा जो धरता है, इस भव से वह नर तरता है || अन्धा देखे, गूंगा गावे, लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे बहरा सुन-सुन कर खुश होवे, जिस पर कृपा तुम्हारी होवे|| मैं हूं स्वामी दास तुम्हारा, मेरी नैया कर दो पारा | चालीसे को ‘चन्द्र' बनावे, पद्म प्रभु को शीश नवावे || सोरठा:- नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन | खेय सुगन्ध अपार, पद्मपुरी में आय के || होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो | जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले || 23

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