Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ श्री सुमतिनाथ भगवान जी श्री सुमतिनाथ चालीसा श्री सुमतिनाथ का करूणा निर्झर, भव्य जनो तक पहूँचे झर-झर । नयनो में प्रभु की छवी भर कर, नित चालीसा पढे सब घर - घर ॥ जय श्री सुमतिनाथ भगवान, सब को दो सदबुद्धि - दान ॥ अयोध्या नगरी कल्याणी, मेघरथ राजा मंगला रानी ॥ दोनो के अति पुण्य पर्रजारे, जो तीर्थंकर सुत अवतारे । शुक्ला चैत्र एकादशी आई, प्रभु जन्म की बेला आई ॥ तीन लोक में आनंद छाया, नरकियों ने दुःख भुलाया ॥ पर प्रभु को ले जाकर, देव न्हवन करते हर्षाकार | तप्त स्वर्ण सम सोहे प्रभु तन, प्रगटा अंग – प्रतयंग में योवन ॥ ब्याही सुन्दर वधुएँ योग, नाना सुखों का करते भोग | राज्य किया प्रभु ने सुव्यवस्थित, नही रहा कोई शत्रु उपस्थित ।। हुआ एक दिन वैराग्य जब, नीरस लगने लगे भोग सब ॥ जिनवर करते आत्म चिन्तन, लौकान्तिक करते अनुमोदन | गए सहेतुक नावक वन में, दीक्षा ली मध्याह्म समय बैसाख शुक्ल नवमी का शुभ दिन, प्रभु ने किया उपवास तीन दिन ।। हुआ सौमनस नगर विहार, धुम्नधुति ने दिया आहार || बीस वर्ष तक किया तप घोर, आलोकित हु लोका लोक ॥ || 20

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