Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 39
________________ श्री अनन्तनाथ भगवान जी श्री अनन्तनाथ चलीसा अनन्त चतुष्टय धारी 'अनन्त, अनन्त गुणों की खान “अनन्त' । सर्वशुध्द ज्ञायक हैं अनन्त, हरण करें मम दोष अनन्त । नगर अयोध्या महा सुखकार, राज्य करें सिहंसेन अपार । सर्वयशा महादेवी उनकी, जननी कहलाई जिनवर की। द्वादशी ज्येष्ठ कृष्ण सुखकारी, जन्मे तीर्थंकर हितकारी । इन्द्र प्रभु को गोद में लेकर, न्हवन करें मेरु पर जाकर । नाम “अनन्तनाथ' शुभ बीना, उत्सव करते नित्य नवीना । सार्थक हुआ नाम प्रभुवर का, पार नहीं गुण के सागर का । वर्ण सुवर्ण समान प्रभु का, जान धरें मति- श्रुत- अवधि का। आयु तीस लख वर्ष उपाई, धनुष अर्घशन तन ऊंचाई । बचपन गया जवानी आई, राज्य मिला उनको सुखदाई। हुआ विवाह उनका मंगलमय, जीवन था जिनवर का सुखमय । पन्द्रह लाख बरस बीते जब, उल्कापात से हुए विरत तब। जग में सुख पाया किसने-कब, मन से त्याग राग भाव सब । बारह भावना मन में भाये, ब्रह्मर्षि वैराग्य बढाये । 39

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