Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 30
________________ श्री शीतलनाथ भगवान जी श्री शीतलनाथ चालीसा शीतल हैं शीतल वचन, चन्दन से अधिकाय । कल्पवृक्ष सम प्रभु चरण, है सबको सुखदाय । जय श्री शीतलनाथ गुणाकर, महिमा मण्डित. करुणासागर । भद्धिलपुर के दृढ़रथ राय, भूप प्रजावत्सल कहलाए। रमणी रत्न सुनन्दा रानी, गर्भ में आए जिनवर ज्ञानी। द्वादशी माघ बदी को जन्मे, हर्ष लहर उमडी त्रिभुवन में । उत्सव करते देव अनेक, मेरु पर करते अभिषेक । नाम दिया शिशु जिन को शीतल, भीष्म ज्वाल अध होती शीतल । एक लक्ष पूर्वायु प्रभु की, नब्बे धनुष अवगाहना वपु की । वर्ण स्वर्ण सम उज्जवलपीत, दया धर्म था उनका मीत । निरासक्त थे विषय भोग में, रत रहते थे आत्मयोग मेँ । एक दिन गए भ्रमण को वन में, करे प्रकृति दर्शन उपवन भे । लगे ओसकण मोती जैसे, लुप्त हुए सब सूर्योदय से । देख ह्रदय में हुआ वैराग्य, आतम हित में छोड़ा राग । तप करने का निश्चय करते, ब्रह्मार्षि अनुमोदन करते । विराजे शुक्रप्रभा शिविका पर, गए सहेतुक वन में जिनवर । संध्या समय ली दीक्षा अक्षुष्ण, चार ज्ञान धारी हुए तत्क्षण । 30

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