Book Title: Jain Chalisa Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 50
________________ श्री मल्लिनाथ भगवान जी श्री मल्लिनाथ चालीसा मोहमल्ल मद-मर्दन करते, मन्मथ दुर्धर का मद हरते ।। धैर्य खड्ग से कर्म निवारे, बालयति को नमन हमारे ।। बिहार प्रान्त ने मिथिला नगरी, राज्य करें कुम्भ काश्यप गोत्री ।। प्रभावती महारानी उनकी, वर्षा होती थी रत्नों की ॥ अपराजित विमान को तजकर, जननी उदर वसे प्रभु आकर ।। मंगसिर शुक्ल एकादशी शुभ दिन, जन्मे तीन ज्ञान युन श्री जिन ।। पूनम चन्द्र समान हों शोभित, इन्द्र न्हवन करते हो मोहित ।। ताण्डव नृत्य करें खुश होकर, निररवें प्रभुको विस्मित होकर ।। बढे प्यार से मल्लि कुमार, तन की शोभा हुई अपार । पचपन सहस आयु प्रभुवर की, पच्चीस धनु अवगाहन वपु की । देख पुत्र की योग्य अवस्था, पिता व्याह को को व्यवस्था ।। मिथिलापुरी को खूब सजाया, कन्या पक्ष सुन कर हर्षाया । निज मन में करते प्रभु मन्थन, है विवाह एक मीठा बन्धन ।। विषय भोग रुपी ये कर्दम, आत्मज्ञान को करदे दुर्गम ।। नही आसक्त हुए विषयन में, हुए विरक्त गए प्रभु वन में। 50

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