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(२०) भागे पीछे न हटा । किस कारण से यह अटक गया, यह जानने के लिये, राजा प्राणप्रिण सहित विमान में से उतर कर नीचे आया और वन में घुसते ही देखा कि एक बड़ीभारी शिला किसी कारण से हिल रही है । राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और कौतूहल में आकर उसने कुछ अपने शरीरके बल से और कुछ विद्या के बल से ज्योंही शिला को हटाया, उस के तले एक सुंदर बालक को लेटा हुआ देखा । राजा ने उसे तुरंत गोद में उठा लिया और विचारने लगा कि यह बालक तो किसी उच्च कुल में उत्पन्न हुआ है। थोड़ी देर विचार करके रानी से कहा कि देवी, तेरे कोई पुत्र नहीं है और तुझे पुत्रकी बड़ी लालसाभी है, इस लिए इस सर्वांग सुंदर, सर्वगुण सम्पन्न बालक को ग्रहण कर । उसके हाथ में देने ही वाला था कि रानी ने अपना हाथ पीछे खेच लिया । राजा ने कारण पूछा । रानी का हृदय दुःख से भर
आया और उसके नेत्रों से आंसुओं की धारा बहने लगी। उसने हाथ जोड़ कर निवेदन किया, प्राणनाथ ! आपके घर में दूसरी रानियों से जन्मे हुए अनेक पुत्र विद्यमान हैं, कहीं यह बालक उन पुत्रों का दास होकर रहा, तो यह बात सदा मेरे दिल में चुभती रहेगी । राजा ने रानी को धैर्य दिया और उसी समय अपने मुख के ताम्बूल से बालक को