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(१) दोनों के गर्भबृद्धिगत होनेलगे और दोनों के शंभुकुमार और सुभानुकुमार पुत्र उत्पन्न हुए। दोनों कुमार दोयज के चंद्रमा के समान दिनों दिन बढ़ने लगे और दोनों की शिक्षा, रक्षा का भी प्रबंध होगया । प्रधुम्न अपने भाई शम्भुकुमार को और भानुकुमार अपने भाई सुभानुकुमार को अपनी विधा, कला, कौशलादि सिखाने लगे।
. एक दिन ये दोनों भाई खेलते २ राज सभा में पहुंच गए। बल्देव जी पांडवों के साथ जुवा खेल रहे थे । उन्होंने इन दोनों भाइयों को भी खेलने के लिए कहा । ये आज्ञा पाकर खेलने लगे, निदान प्रद्युम्न की सहायता से और उस की माया तथा विद्या के बल से शम्भुकुमार ने भानुकुमार तथा उसकी माता सत्यभामा का सारा धन जीत लिया और याचकों को बांट दिया जिस से सत्यभामा का बड़ा मान गलित हुआ।
और भी कई बार कुमार ने सत्यभामा का खूब ही तिरस्कार किया। एक बार जब कृष्ण जीने रुष्ट होकर शम्भुकुमार को निकाल दिया था और कहा था कि यदि सत्यभामा हथिनी पर बैठ कर इस के सम्मुख जावे और भक्ति पूर्वक उत्सव के साथ इसे लेआवे तो उस समय भले ही यह मेरे नगर में आ सकता है अन्यथा नहीं तब प्रद्युम्न ने अपनी माया से शम्भु