Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ ( २६ ) रुक्मणी को अथाह आनंद हुआ। वह अपनी चिरजीवि पुत्र को याद करती हुई और उसके आगमन की बाट देखती हुई मुख से रहने लगी। ____* चौदहवां परिच्छेद * घर प्रद्युम्न दिनों दिन दोयज के चंद्रमा के समान बढ़ता गया, सर्व स्त्री पुरुष उसे प्यार करने लगे 60000 और हाथों हाथ खिलाने लगे । ज्यों २ कुमार बडा होता गया राजा काल संवर की ऋद्धि सिद्धि भी समस्त वृद्धि को प्राप्त होती गई। इस प्रकार अतिशय सुखमई वाल्यावस्था को उल्लंघन कर कुमार यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ और थोड़े ही काल में शास्त्रों में व शस्त्र विद्या में प्रवीण होगया । अनेक प्रकार की कला में कुशल होगया, गुण गण सम्पन्न हो गया और धीरता वीरता आदि गुणों में समस्त शूरवीरों में अग्रसर होगया। जो राजा कालसंवर पर चढ़ाई करता अथवा किसी प्रकार की उदंडता दिखलाता, प्रद्युम्न तत्काल उस परास्त करके यमपुरी को पहुँचा देता और उसकी सेना को दशों दिशाओं में भगा देता। इस प्रकार अनेक राजाओं का मान गलित करके प्रधुम्न कुमार ने दिग्विजय के लिये पयान किया और थोड़े ही

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98