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राज ! मुझे बड़ी चिंता होरही है, कृपा करके यह बतलाइये कि मेरी माता मुझपर क्यों आसक्त हुई है और उसके मन में क्यों ऐसे विकार उत्पन्न हुए हैं । महाराज ने उत्तर दिया, कुमार, संसार की विचित्र लीला है । यह सब पूर्व जन्म के सम्बंध का कारण है । पूर्व भव में तू राजा मधु था और कनक माला हेमरथ की रानी चंद्रप्रभा थी जिसको तूने मोह के वश हरलिया था । उसके साथ तूने बाईस सागर पर्यंत स्वर्ग में उत्कृष्ट सुख भोगे और अब उसी मोह के वश से वह तुझे देखकर काम से संतप्त होगई है और तुझे दो विद्याएँ देना चाहती है, सो तू जा किसी तरकीब से उनको लेले ।
इसके अनंतर कुमार ने प्रश्न किया, महाराज! कृपा करके यह भी बतलाइये कि मेरे माता पिता कौन हैं, मेरा कैसे हरण हुआ और किस पाप के उदय से मेरा माता से वियोग हुआ ? मुनि महाराज ने उत्तर दिया, वत्स ! तेरे पिता द्वारकाधिपति यदुवंशतिलक श्रीकृष्ण नारायण हैं और माता जगत विख्यात् रुक्मणी देवी है, पूर्वभव के वैरी हेमरथ के जीव ने जो अब दैत्य है बैर से सोते समय तुझे हरण करके तक्षक पर्वत की एक शिला के नीचे दाब दिया था। यह तेरा वियोग तेरी माता के पापोदय से हुआ है । उसने पहिले किसी मयूर के बच्चे को कौतुक वशात् अलग करदिया था